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ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय छात्र आंदोलन से हिल गई थी मुख्यमंत्री बोरा की कुर्सी..

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यूं तो आपने कई तरह के आंदोलनों को सुना और देखा होगा लेकिन एक छात्र आंदोलन ऐसा है जो इतिहास के पन्नों में ‘गधा आंदोलन’ के नाम से दर्ज हो चुका है। ऐसा छात्र आंदोलन शायद अब कभी नही होगा, इस अनोखें आंदोलन में 3 हजार से अधिक छात्रों पर लाठियां बरसाई गई थी और 1 महीनें तक छात्र नेता जेल की सलाखों में कैद रहे है। रीवा, शहडोल, जबलपुर सागर संभाग के छात्रों के साथ ही भोपाल तक इसकी गंूज पहुंच गई थी। छात्रों के इस आंदोलन ने प्रदेश सरकार को हिलाकर रख दिया था। आंदोलन के 4 दशक पूरे हो चुके है आइये आपको लेकर चलते है छात्र आंदोलन के अतीत पर जहां से छात्रों की यादें जुडी हुई है…

राजनीति से लेकर शिक्षा जगत में ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय रीवा की एक मिशाल रही है। छात्र आंदोलनों के इतिहास में ‘गधा आंदोलन’ काला दिवस के रूप में जाना जाता है। जब फीस बढोत्तरी के विरोध में छात्र लामबंद हुये। इस आंदोलन की शुरूआत 16 सितम्बर 1987 से हुई थी। आंदोलन के पहले दिन पुलिस ने कालेज में छात्रों की घेराबंदी कर रखी थी। ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय के छात्र प्रेसीडेंट अनलपाल सिंह के नेतृत्व में बढी हुई फीस कम करने की मांग को लेकर छात्र आंदोलन पर डटे रहे। पुलिस ने टीआरएस कालेज में छात्र आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया। उसी दौरान इंजीनियरिंग कालेज के छात्र शिवबालक चैरसिया के सिर पर पुलिस ने लाठी मार दी और छात्र लहूलुहान हो गया। छात्रों पर हमले की आग पूरे शहर में फैल गई। आंदोलन में छात्रों ने एकजुटता कि मिशाल कायम कर दी।

टीआरएस प्रेसीडेंट अनलपाल सिंह, उदय मिश्रा प्रेसीडेंट इंजीनियरिंग कालेज, शहीद अंसारी प्रेसीडेंट जनता महाविद्यालय, राजीव मित्तल प्रसीडेंट अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, तरूण सिंह, मनीषा शुक्ला प्रेसीडेंट जीडीसी के साथ ही राजेश तिवारी पूर्व प्रेसीडेंट छात्रों के समर्थन में थे। छात्र प्रशासक के आगे झुकने को तैयार नही थे। शहर में तीन दिनों तक यह आंदोलन सफल रहा था। शहर का बाजार बंद था यहां तक की ठेले और गुमटी भी छात्रों के समर्थन में बंद रही। आंदोलन की आग सुलग रही थी। छात्रों ने पूर्व में ही प्रशासन को गधा जुलूस निकालने की सूचना दे रखी थी।

 

मुख्यमंत्री, गृहमंत्री शिक्षा मंत्री सहित कलेक्टर का निकला गधा जुलूसः

 

पूर्व सूचना अनुसार 21 सितम्बर 1987 को टीआरएस में गधा जुलूस का आयोजन किया गया था। जुलूस का आर्कषण मुख्यमंत्री गृहमंत्री, शिक्षामंत्री से लेकर कलेक्टर कमिश्नर और एसपी के नाम वाले गधे थे। गधो के गले में तख्तियां बांधी गई थी और इसमें लिखा था नाम के साथ लिखा गया था ‘मै गधा हूं’। इतना ही नही ठोल बाजे की व्यवस्था की गई थी। छात्र फिल्म प्रतिघात का गाना ‘हमारे बल्मा बेइमान हमें पुटियाने आये है’ बजाते हुये आगे बढे। जुलूस कालेज से होते हुये काॅलेज चैराहे पर इक्कठा था। उसी दौरान सर्किट हाउस में कमिश्नर रीवा संभाग नंे बैठक आयोजित की थी, बैठक में शामिल होने आये कलेक्टर शहडोल की गाडी कालेज के सामने से गुजरी। छात्रों ने गाडी को रोका तो कलेक्टर साहब ने अभद्रता की।

 

इससे छात्र आंदोलित हो गये और देखते ही देखते शांतिपूर्ण जुलूस पथराव में तबदील हो गया। लेकिन सुनियोजित तरीके से कलेक्टर एच.के. मीणा ने पहले ही योजना बना रखी थी और छात्र उस जाल में फंस गये। कलेक्टर ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए पुलिस को लाठी चार्ज की अनुमति दे दी। जबकि सिटी मजिस्ट्रेट पी.के श्रीवास्तव लाठीचार्ज के पक्ष में नही थे। पी.के श्रीवास्तव सिटी मजिस्ट्रेट होने से पहले शिक्षक थे और उन्हे छात्रों से हमदर्दी थी। बावजूद इसके कलेक्टर ने छात्रों पर लाठी चार्ज करा दिया। एसपी एच.एस खांन के नेतृत्व वाली पुलिस सारी हदे पार करते हुए छात्रों को बडी बेरहमी से दौडा-दौडा कर पीटा।

 

कलेक्टर ने पहले ही पूरे संभाग की फोर्स बुलकर टीआरएस के मैदान को छावनी मे तबदील कर रखा था। पुलिस ने कालेज में छात्रों को घेर लिया गया और कमरों में घुसकर छात्रों के साथ ही प्रोफेसरों पर लाठियां बरसाई इसमें कई छात्र और प्रोफेसर घायल हुये थे। बताया है कि इस लाठीचार्ज की भगदड में सैकडों छात्रों को चोंटे आई थी इतना ही नही डेढ सैकडो कुर्सी, बेंच, दरवाजे और साइकिले टुटी थी। कालेज में घुसने की अनुमति तक पुलिस के पास नही थी।

 

विश्वविद्यालय सहित 3 कालेज के प्रेसीडेंट हुये गिरफ्तार

पुलिस ने प्रेसीडेंट अनलपाल सहित अन्य पदाधिकारियों को प्राचार्य के कक्ष से हिरासत में ले लिया था। अनलपाल सिंह, शहीद अंसारी, उदय प्रकाश मिश्रा, रजनीश चतुर्वेदी, राजकुमार शुक्ला, संजय सिंह, गोपाल सिंह, राकेश पाण्डेय, प्रभात पाण्डेय, बलबीर द्विवेदी, सुधाशू झा, राजेश तिवारी, तरूण सिंह, सुबोध पाण्डेय, नरेन्द्र गुप्ता, अखिलेश श्रीवास्तव सहित अन्य छात्रों को गिरफतार कर लिया गया था। शारदा जायसवाल, जावेद अंसारी, राकेश यंगल इसके अलावा छात्र आंदोलन से जुडे छात्रों को पुलिस तलाश रही थी। इस मैनेजमेंट में सिटी कोतवाली थाना प्रभारी सूर्यवली सिंह यादव, हिम्मत सिंह, अखण्ड सिंह, अभिराम सिंह तिवारी जैसे पुलिस अफसर जुटे हुये थे। छात्रों की गतिविधियों की सीआईडी निगरानी कर रही थी।

 

छात्रों के शरीर पर 87 लाठियों और बूट के मिले थे निशानः

पुलिस ने छात्रों पर कितनी बर्बरता की थी इसका उदाहरण कालेज और स्कूल के छात्र थे। छात्र घटना के तीसरे दिन न्यायधीश के समक्ष जब छात्र संजय सिंह परिहार के शरीर पर मारी गई लाठियां गिनी गई तो 87 लाठियों के निशान पाये गये थे। वहीं स्कूली छात्र पीयूष सिंह और अनवर इलाही के पीठ में बूट के निशान मिले थे। इससे अंदाजा लगाया जाता कि पुलिस ने कितनी बर्बरता से छात्रों को मारा होगा। पुलिस ने छात्रों के साथ ही प्रोफेसर, पत्रकार और फोटोग्राफर को भी मारा था। छात्रों के अलावा प्रो. श्यामराज सिंह, पीके सरकार, डीआर शाह, आईपी त्रिपाठी, अमीरउल्ला खांन, अजय शंकर पाण्डेय, अमित तिवारी पर पुलिस ने लबडतोड़ लाठी चलाई थी।

 

महाविद्यालय सहित यूनिर्वसिटी का मिला था समर्थनः

अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति हीरालाल निगम, ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यायल के प्रभारी प्राचार्य के.पी. सिंह छात्रों के साथ थे। इस आंदोलन की आग रीवा जिले से होते हुये सतना शहडोल, जबलपुर, पन्ना, टीकमगढ तक पहुंच गई और सागर भोपाल के छात्रों ने भी आंदोलन का समर्थन कर दिया था। लिहाजा सरकार की नींद हराम हो गई थी। जेल प्रशासन ने गिरफतार छ छात्रों को राजनैतिक बंदी बनाया था और छात्र बंदियों की रिहाई मांग उठा रहे थे। छात्रों से पुलिस और प्रशासन को इतना खौफ हो गया था कि कालेज चैराहे से गुजरने में डरते थे।

 

जेल में मनी थी छात्रों की दशहरा-दीपावलीः-

आंदोलनरत कई छात्रों को सिटी कोतवाली पुलिस ने गिरफतार कर जेल भेज दिया। अगले दिन मुचलके कई छात्र रिहा हो गये लेकिन कई छात्रों ने आंदोलन को जारी रखा। टीआरएस के तत्कालीन प्रेसीडेंट अनलपाल सिंह बताते है कि जेल अधीक्षक सीडी मदान, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी छात्रों को मैनेज करने में लगे थे। लेकिन 17 छात्र बिना शर्त रिहाई की मांगो को लेकर डटे रहे हुये थे। समाजवादी नेता यमुना प्रसाद शास्त्री और पं. श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी, यचुत्तानंद मिश्र, प्रेमलाल मिश्रा, नागेन्द्र सिंह सहित अन्य नेता बंदी छात्रों से मिलने जेल जाते थे और उनका मनोबल बढा रहे थे। लिहाजा तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल बोरा ने छात्रों के आंदोलन को यहीं खत्म करने की गुजारिश की। पूर्व मुख्यमंत्री कुंवर अर्जुन सिंह के इलाके मे छात्र आंदोलन होने से तत्कालीन मुख्यमंत्री घबरा गये थे। इसी वर्ष छात्र संघ के चुनाव शपक्ष ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री कुंवर अर्जुन सिंह शामिल हुये थे। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री मोतीलाल बोरा को डर था कि इस आंदोलन से उनकी कुर्सी छिन जायेगी। उन्हे मुख्यमंत्री बने कुछ महीने ही हुये थे। छात्र हित में आंदोलन के सूत्रधार रहे छात्र नेता राजनैतिक बंदी दशहरा-दीपावली का त्यौहार जेल में मनाकर बाहर आयेे।

 

इनका स्वागत वर्तमान गुढ़ विधायक नागेन्द्र सिंह नें किया था। इस आंदोलन की न्यायिक जांच बैठाई गई थी जिसमें आखिरकार शासन-प्रशासन को दोषी पाया गया था। एक इत्तेफाक है कि आंदोलन की तारीख को ही कुछ बाद छात्रों पर लाठी चार्ज कराने वाले तत्कालीन कलेक्टर मीणा की मौत हो गई। गधा आंदोलन सरीक हुये कई छात्र वर्तमान में कई बडे ओहदों में कार्यरत है कुछ नेता है तो कुछ अफसर और कुछ समाजसेवी। आंदोलन के सूत्रधार छात्रों की लम्बी लिस्ट है उनके नाम लेख में दर्ज करना संभव नही हो पाया हम उनकी भावनाओं का सम्मान करते है। अगले अंक में पढिये जीडीसी छात्राओं का ऐतिहासिक आंदोलन..

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