विन्ध्यके दो दिग्गज जिनकी दोस्ती की मिसाल है कायम..
विंध्य प्रदेश की राजधानी का गौरव रीवा अपने विलीनीकरण के खिलाफ उबल रहा था। डॉ. राममनोहर लोहिया की अगुवाई में विलीनीकरण की कोशिश के खिलाफ आंदोलन में दो जनवरी 1950 को कोठी कम्पाउंड परिसर में प्रदर्शनकारियों पर गोली चली।
जिसमे गंगा,अजीज और चिंतली शहीद हो गए इतना ही नहीं सैकड़ो आंदोलनकारियो को जेलों में ठूंस दिया गया। आंदोलन के बीच 24 -26 फरवरी 1950 को रीवा में सोशलिस्ट पार्टी की हिन्द किसान पंचायत का राष्ट्रीय अधिवेशन घोषित कर दिया गया।
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युवा तुर्क जगदीश चंद जोशी, यमुना प्रसाद शास्त्री और श्रीनिवास साथियों समेत मैहर जेल में बंद थे। इस अधिवेशन पर देशभर की नजर टिकी हुई थी। विदेशी एजेंसियों केरिपोर्टर भी कवरेज के लिए आए हुए थे। सोशलिस्टों का समूचा शीर्ष नेतृत्व यहां जुटा था। मंच पर डॉ. लोहिया, आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, अरुणा आसफ अली, कमला देवी चट्टोपाध्याय, कर्पूरी ठाकुर, मामा बालेश्वर दयाल, रामानंद मिश्र जैसे दिग्गज थे।
आंदोलनकारियों की रिहाई 26 फरवरी को हुई। वे सीधे अधिवेशन स्थल पर पहुंचे। वातावरण ऐसा उद्वेलित हुआ कि स्वयं लोकनायक जयप्रकाश ने मंच पर खड़े होकर नारा उछाला-जोशी, यमुना, श्रीनिवास, जनमेदिनी के बीच से स्वर उभरा-जिंदाबाद-जिंदाबाद। समाजवादी तरुणों के आंदोलन की तपिश का प्रतिफल था कि 1950 में विंध्य प्रदेश का विलय रोक दिया गया और धारा सभा बनाई गई लेकिन यह 1956 तक ही रह पाया था.
सोशलिस्ट पार्टी ने विंध्य प्रदेश में अपने जो उम्मीदवार उतारे चंद्रप्रताप तिवारी को छोड़कर प्राय: सभी 24-25 वर्ष के थे। जगदीश चंद्र जोशी रीवा से, यमुना प्रसाद शास्त्री सिरमौर से और श्रीनिवास तिवारी मनगवां से सोपा के प्रत्याशी बने। शास्त्री का मुकाबला केएमपीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हारौल नर्मदा प्रसाद सिंह से था, वे मामूली अंतर से हार गए। जब कि जोशी ने कांग्रेस के बड़े नेता मुनि प्रसाद शुक्ल को व तिवारी ने बघेलखंड कांग्रेस के अध्यक्ष यादवेन्द्र सिंह को हराया था।
जगदीशचंद्र जोशी और श्रीनिवास तिवारी पर उम्र को लेकर मुकदमा चला। आरोप था कि उनकी उम्र उम्मीदवार बनने की निर्धारित उम्र से कम थी। जोशी को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया जबकि तिवारी अहर्ता अनुसार अपनी उम्र साबित करने में सफल रहे। जोशी आगे चलकर 57 में फिर विधायक हुए। शास्त्री को पहली सफलता 62 में मिली,जबकि तिवारी 20 साल बाद दोबारा चुनाव जीत पाए। 1972 में चंदौली सम्मेलन में इंदिरा की उपस्थिति में समाजवादियों के अधिवेशन की अध्यक्षता तिवारी ने की थी।