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Rewa Vidhan Sabha Seat: BJP का गढ़ मानी जाती है रीवा सीट, क्या 20 साल का सूखा खत्म कर पाएगी कांग्रेस?

रीवा विधानसभा सीट पर 1998 के चुनाव के बाद से लेकर अब तक कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई है. 2003, 2008, 2013 और 2018 के चुनाव में बीजेपी ने हर बार जीत हासिल की. पार्टी के राजेंद्र शुक्ल का जोरदार दबदबा रहा और लगातार 4 बार वह जीतने में कामयाब रहे.

मध्य प्रदेश की सियासत में रीवा जिले की खासी अहमियत मानी जाती है. जिले की रीवा विधानसभा सीट की अपनी राजनीतिक पहचान है और यहां से कांग्रेस की स्थिति काफी कमजोर रहती है. भारतीय जनता पार्टी के लिए रीवा एक महत्वपूर्ण गढ़ है और जिले की सभी 8 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का ही कब्जा है. हालांकि हाल में हुए महापौर के चुनाव में कांग्रेस ने जिस तरह से बीजेपी प्रत्याशी को हराकर जीत हासिल की उससे पार्टी के हौसले बुलंद हैं और इस बार कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है.

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रीवा जिले की विधानसभा सीटें विंध्य क्षेत्र की महत्वपूर्ण सीटें मानी जाती है जो कभी विंध्य प्रदेश की राजधानी हुआ करती थी. पिछले 2 बार से बीजेपी के जनार्दन मिश्रा यहां से लोकसभा सांसद है. 2018 के विधानसभा चुनाव में रीवा जिले की आठों विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत का अपना परचम लहराया था. रीवा विधानसभा पर ज्यादातर मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही रहा है.

कितने वोटर, कितनी आबादी

रीवा सीट पर मुकाबला द्विपक्षीय ही रहा है. 2018 के चुनाव में कुल 26 उम्मीदवार मैदान में उतरे, लेकिन जीत बीजेपी के पक्ष में गई. बीजेपी के राजेंद्र शुक्ल ने कांग्रेस के अभय मिश्रा से 18,089 मतों के अंतर से यह मुकाबला जीता था. राजेंद्र शुक्ल को चुनाव में कुल 69,806 वोट मिले जबकि कांग्रेस के अभय मिश्रा के खाते में 51,717 वोट आए.

2018 के चुनाव में कुल 2,04,424 वोटर्स थे जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,07,668 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 96,756 थी. इनमें से 1,36,118 (66.9%) मतदाताओं ने वोट डाले. जबकि NOTA के पक्ष में 660 (0.3%) वोट पड़े थे.

2003 के बाद से यहां कांग्रेस का सफाया हो गया और यह सीट कांग्रेस की गढ़ बन गई इस सीट पर लगातार बीजेपी का कब्जा रहा है वर्तमान में कैबिनेट मंत्री राजेंद्र शुक्ल यहां से 4 बार से लगातार विधायक है. 2018 के चुनाव में बीजेपी के राजेंद्र शुक्ल ने कांग्रेस के अभय मिश्रा को 18 हजार से भी ज्यादा वोटों से हराकर जीत हासिल की थी.

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कैसा रहा राजनीतिक इतिहास

रीवा सीट की राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो पिछले 5 चुनाव में कांग्रेस को एक बार भी जीत नहीं मिली है. 1990 के चुनाव में कांग्रेस के महाराजा पुष्पराज सिंह ने जीत हासिल की थी तो 1993 में भी फिर से महाराजा पुष्पराज सिंह ही विजयी हुए थे. 5 साल बाद 1998 में हुए चुनाव में महाराजा पुष्पराज सिंह फिर से विजयी हुए. लेकिन इस बार वह निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव जीतने में कामयाब हुए था.

1998 के चुनाव से लेकर अब तक कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई है. 2003, 2008, 2013 और 2018 के चुनाव में बीजेपी ने हर बार जीत हासिल की. पार्टी के राजेंद्र शुक्ल का जोरदार दबदबा रहा और लगातार 4 बार वह जीतने में कामयाब रहे.

2011 की जनगणना के मुताबिक रीवा जिले की कुल आबादी 23,65,106 है, पुरुषों की आबादी 12,25,100 है जबकि महिलाओं की संख्या 11,40,006 है. जनगणना के मुताबिक जिले में 5,26,065 परिवार रहते हैं. रीवा जिले में 95.93% यानी 22,68,838 आबादी हिंदुओं की है. हिंदुओं के बाद 3.61% यानी 85,414 आबादी मुसलमानों की है.

सामाजिक-आर्थिक ताना बाना

रीवा शहर का नाम रेवा नदी के नाम पर पड़ा जो कि नर्मदा नदी का पौराणिक नाम कहलाता है. रीवा शहर बादशाह अकबर के नवरत्न और संगीत सम्राट तानसेन और बीरबल जैसी महान विभूतियों की जन्मस्थली रही है. बीहर एवं बिछिया नदी के आंचल में बसा रीवा शहर बघेल वंश के शासकों की राजधानी के साथ-साथ विंध्य प्रदेश की भी राजधानी रही है. रीवा रियासत की स्थापना करीब 1400 ई. में बघेल राजपूतों द्वारा की गई थी. यहां की खास चीजों में जलेबी और समोसा काफी पसंद किया जाता है.

रीवा शहर की अपनी ऐतिहासिक विरासत भी है. इसे दुनिया में सफेद शेरों की धरती के रूप में भी जाना जाता है. पहला सफेद बाघ यहीं पर मिला था. इसके साथ ही रीवा सुपाड़ी से बने सामानों के लिए प्रसिद्ध है. यहां के सुपाड़ी के बने सामान देश के साथ ही विदेश में भी भेजे जाते है. यहां पर रीवा किला में मौजूद महामृत्युंजय मंदिर, रानी तालाब का देवी मंदिर और चिरौहला मंदिर काफी प्रसिद्ध है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

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