MP Politics: क्या सीधी कांड के पीड़ित की चरण वंदना से डैमेज कंट्रोल कर पाएंगे शिवराज?

मध्य प्रदेश की 7.26 करोड़ की आबादी में से 21.1 प्रतिशत की हिस्सेदारी आदिवासियों की है। 47 विधानसभा सीटें तो सीधे-सीधे आदिवासियों के लिए आरक्षित है। इन्हें मिलाकर कुल 84 यानी करीब एक-तिहाई से अधिक सीटों पर आदिवासी वोट निर्णायक है।

मध्य प्रदेश की सियासत में पिछले दो दिन में दो तस्वीरें सामने आई। एक सीधी से आया वीडियो था। भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला के पूर्व प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला नशे में चूर होकर एक आदिवासी युवक पर पेशाब करते दिखे। फिर दूसरी तस्वीर आई गुरुवार को सुबह। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सीधी कांड के पीड़ित दशमत रावत को न केवल मुख्यमंत्री निवास पर बुलाया, बल्कि उसकी चरण वंदना की। शॉल ओढ़ाई। साथ में भोजन किया। सुदामा कहकर पुकारा। डैमेज कंट्रोल की कोशिश की। मुख्यमंत्री की इन तस्वीरों ने सीधी के पेशाब कांड के पाप को धोने की कोशिश तो की, लेकिन क्या इसे जनता स्वीकार करेगी? इसका जवाब नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनावों के नतीजों में ही मिलेगा।

इन दो तस्वीरों के बीच बहुत कुछ हुआ। जैसे ही प्रवेश शुक्ला का वीडियो सामने आया, कांग्रेस ने तमाम आदिवासी नेताओं को मैदान में उतार दिया। युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत भूरिया रात को सीधी पहुंच गए। पीड़ित के घर पहुंचे। वहां उसकी पत्नी से मिले। गुरुवार को दिनभर सीधी में आंदोलन भी किया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने आरोप लगाया कि शिवराज नाटक-नौटंकी कर आदिवासियों को प्रलोभन दे रहे हैं। कुल मिलाकर मध्य प्रदेश की राजनीति आदिवासियों के ईर्द-गिर्द आकर ठहर गई है। ऐसा क्यों?

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आदिवासी सीटों पर जीत ही पहुंचाती है सत्ता तक 
पिछले 20 साल में मध्य प्रदेश ने चार विधानसभा चुनाव देखे हैं। चारों में ही जिसने अनुसूचित जनजाति या आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर कब्जा जमाया, प्रदेश की सत्ता उसे मिली है। दस साल की दिग्विजय सिंह सरकार को गिराकर 2003 में भाजपा सत्ता में आई थी, तब उसने आदिवासियों के लिए आरक्षित 41 सीटों में से 37 पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को दो-दो सीटें मिली थी। फिर 2008 में आरक्षित सीटें बढ़कर 47 हुई तो भाजपा ने 29 पर जीत हासिल की। कांग्रेस के पास 17 सीटें गई थीं। 2013 में भाजपा ने 30 सीटें जीती और कांग्रेस सिमटकर 15 पर आ गई थी। 2018 में कांग्रेस ने खोया जनाधार हासिल किया और 47 में से 30 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी। भाजपा को सिर्फ 16 सीटें ही मिली थी। यह बात अलग है कि 15 महीनों में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ मिलने पर भाजपा ने फिर सत्ता हासिल कर ली।

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हर पांच में से एक वोटर आदिवासी 
मध्य प्रदेश की 7.26 करोड़ की आबादी में से 21.1 प्रतिशत की हिस्सेदारी आदिवासियों की है। 47 विधानसभा सीटें तो सीधे-सीधे आदिवासियों के लिए आरक्षित है। इन्हें मिलाकर कुल 84 यानी करीब एक-तिहाई से अधिक सीटों पर आदिवासी वोट निर्णायक है। कई सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी आबादी का प्रतिशत 30 से 50 प्रतिशत के बीच है। थोड़ा भी वोट इधर से उधर पड़ा तो हार-जीत के नतीजे पर असर पड़ता है।

भाजपा ने शाह-मोदी से लेकर मुर्मू तक को उतारा
2018 में मिली हार के बाद भाजपा ने कई मोर्चों पर फोकस किया है। प्रमुख है जनजातीय वोटबैंक पर खोया जनाधार फिर से हासिल करना। सितंबर 2021 में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जबलपुर में गोंड स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रघुनाथ शाह और उनके बेटे शंकर शाह के नाम पर बने संग्रहालय की स्थापना की घोषणा की। छिंदवाड़ा में एक अस्पताल का नाम भी उनके नाम पर किया गया। 15 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन को जनजातीय गौरव दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की। भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर गोंड रानी कमलापति के नाम पर किया गया। 89 आदिवासी विकासखंडों में घर पर राशन डिलीवरी की योजना की शुरुआत की। पेसा कानून को लागू किया गया। वन ग्रामों को राजस्व ग्राम बनाया। इंदौर जिले में कालाकुंड रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर टंट्या भील के नाम पर किया गया। 15 नवंबर 2022 को जनजातीय गौरव दिवस के समारोह में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने शिरकत की। यानी भाजपा ने हर स्तर पर आदिवासियों को साधने के लिए हरसंभव कोशिश की है और कर रही है। पिछले हफ्ते मोदी शहडोल आए तो उन्होंने आदिवासियों से चौपाल लगाकर चर्चा की। उनके बीच बैठकर उनके पकवानों का लुत्फ उठाया।
कांग्रेस भी रणनीति बनाने में पीछे नहीं 
कांग्रेस भी आदिवासी वोट का महत्व समझ रही है। इसी वजह से उसने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को उन जिलों से निकाली, जहां आदिवासी बड़ी संख्या में रहते हैं। सीधी मामले में कांग्रेस ने जिस तरह मुद्दा उठाया और सरकार को घेरा, मुख्यमंत्री को डैमेज कंट्रोल के लिए उतरना पड़ा। आने वाले दिनों में कांग्रेस इस संबंध में और हमलावर होगी।

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गुटों में बंटा जयस, गोंगपा भी जुटा रही ताकत 
2018 के चुनावों में कांग्रेस की ताकत बना जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन यानी जयस इस बार खुद बिखर गया है। कांग्रेस ने संगठन के चार नेताओं को टिकट दिए थे। इस बार जयस संरक्षक और कांग्रेस विधायक डॉ. हीरालाल अलावा ने 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। डॉ. आनंद राय ने जयस का एक अलग गुट बनाकर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के साथ तालमेल बिठाया है। चुनाव भी मिलकर लड़ने की तैयारी है। वहीं, 2018 में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी सत्ता-विरोधी वोटों को काटकर कांग्रेस की परेशानी बढ़ा सकती है। 2003 में पार्टी ने तीन सीटें जीती थी। उसके बाद वह बिखर गई और उसका जनाधार लगातार खिसकता रहा है।

SOURCH : AMAR UJALA

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