शिवनगरी देवतालाब में स्थापित हुआ वैदिक घनाद अनुष्ठानम्
Rewa: International Vedic Ghanad Anushthanam started in Shiva Nagri Devtalab
विंध्य की पावन भूमि देवतालाब में आचार्य कमलेश मिश्र ने सनातन संस्कृति के प्रचार प्रसार व वैदिक पूजा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से देवतालाब के खुझवा में वैदिक घनाद अनुष्ठानम् संस्थान की स्थापना किया है.
आपको बता दे कि आचार्य कमलेश मिश्र देश – विदेश में लगभग 25 वर्षों से लगातार सनातन धर्म व संस्कारों से अलग हुए लोगों को संस्कार युक्त बनाने का प्रयास कर रहें है. शास्त्रों में वर्णित सभी 16 संस्कारों को वैदिक रीति-रिवाज से संपादित करा रहे हैं.
समाज में कहावत है कि बुढ़ापे में आपको रोटी आपकी औलाद नही बल्कि आपके दिए संस्कार खिलाएंगे।
पूरे भारतवर्ष में पश्चिमी देशों की तरह लगातार वृद्धाश्रम की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, समाज में उन्नति का मतलब यह तो नहीं होता ना कि परिवार में दूरियां बढ़ती जाए, परिवार में क्लेश बना रहे, बुजुर्ग माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया जाए .
लेकिन आज यह सब हमारे समाज में हो रहा है,
आचार्य जी का उद्देश्य ही रहा है कि प्रत्येक व्यक्ति हर समस्याओं से मुक्त हो, इसके लिए जरूरी है कि वह संस्कारवान बनें
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आज भाग – दौड़ भरी जिंदगी में हर व्यक्ति तरह-तरह की समस्याओं से जूझ रहा है , परिवार बिखर रहे है, पश्चिमी सभ्यता हावी हो रही है. बुजुर्गों का अनादर किया जा रहा है, व्यक्ति कितना भी सफल हो जाए, करोड़ों की दौलत भले ही कमा लें, अगर उसके जीवन में सुख – शांति नहीं है, तो उसका जीवन निरर्थक है.
आचार्य जी छात्रों के मार्गदर्शन पर भी कार्य कर रहे हैं. आचार्य जी कहते हैं कि भारतवर्ष में जब से गुरुकुल व्यवस्था को खत्म कर पश्चिमी देशों की
स्कूली व्यवस्था को छात्रों के ऊपर लादा गया है, इससे बच्चों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है .
आज के कान्वेंट स्कूल के विद्यार्थी मम्मी पापा का, बुजुर्गों का चरण वंदन कर आशीर्वाद लेने की जगह हाय हेलो कर रहा है. बच्चों को अगर उपहार ना दिए जाए तो वह कुछ ही समय तक रोएगा, लेकिन संस्कार ना दिए जाए तो वह जीवन भर रोएगा।
आचार्य जी कहते हैं कि बच्चे को जन्म से ही धर्म, शास्त्र और सामाजिक संस्कार की शिक्षा देना बहुत जरूरी होता है, अगर आपका परिवार संस्कार युक्त नहीं है, परिवार में सकारात्मक माहौल नहीं है, तो निश्चित तौर पर उसका दुष्परिणाम बच्चे के जीवन पर भी पड़ेगा. क्योंकि सोच बदली जा सकती है लेकिन संस्कार नहीं. बच्चा संस्कार अपने परिवार से ही सीख सकता है.