डेटा संरक्षण विधेयक

डेटा संरक्षण विधेयक प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है: एडिटर्स गिल्ड

एजेंसी | नई दिल्ली. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) विधेयक के प्रावधानों पर चिंता व्यक्त करते कुछ हुए रविवार को कहा कि ये प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। गिल्ड ने एक बयान में कहा कि यह विधेयक पत्रकारों और उनके सूत्रों सहित नागरिकों की निगरानी के लिए एक सक्षम ढांचा तैयार करता है। गिल्ड ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेजने का आग्रह किया है।

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गिल्ड ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव और संसद में राजनीतिक दलों के नेताओं को भी पत्र लिखकर विधेयक पर अपनी चिंताओं से अवगत कराया है। सरकार ने भारतीय नागरिकों की निजता की रक्षा करने के उद्देश्य से तीन अगस्त को लोकसभा में डीपीडीपी विधेयक पेश किया।

इसमें व्यक्तियों के डिजिटल क डेटा की सुरक्षा करने में विफल रहने या दुरुपयोग करने वाले संस्थानों पर 250 करोड़ रुपए तक का है जुर्माना लगाने का प्रावधान है। यह विधेयक उच्चतम इ न्यायालय द्वारा निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताने के छह साल बाद आया है। गिल्ड ने कहा कि डीपीडीपी विधेयक की धारा 36 के तहत सरकार किसी भी सार्वजनिक या निजी संस्थान से पत्रकारों और उनके स्रोत सहित नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी प्रस्तुत करने के लिए कह सकती है।

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गिल्ड ने खंड 17 (2) (ए) पर भी चिंता व्यक्त की, जो केंद्र सरकार को इस विधेयक के प्रावधानों से किसी भी ‘राज्य के साधन’ को छूट देने वाली अधिसूचना जारी करने की अनुमति देता है, जिससे आंतरिक साझाकरण और डेटा का प्रसंस्करण सहित डेटा संरक्षण प्रतिबंधों के दायरे से बाहर हो जाता है।

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