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बिरहा गायन:  बघेलखंड का वह गायन जब कानों में उँगली लगाकर ऊँची टेर के साथ गाया जाता है।

बिरहा गायन : बघेलखण्ड में बिरहा गायन परम्परा सभी व्यक्तियों में पाई जाती है। बिरहा की गायन शैली सर्वथा मौलिक और माधुर्यपूर्ण है।

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बिरहा प्राय: खेत, सुनसान राहों में सवाल जवाब के रूप में गाया जाता है। कहीं-कहीं बिरहा बिना वाद्यों और सवाद्य गाये जाते हैं।

कानों में उँगली लगाकर ऊँची टेर के साथ बिरहा गाया जाता है। गायक गाते समय भौंहों को नचाता है, तब ऐसा लगता है, जैसे कोई प्रश्न पूछ रहा हो।

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उतरती रात में बिरहा की तानें आकर्षक और कर्णप्रिय लगती हैं। बिरहा श्रृंगार परक विरह गीत हैं

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