48 Years of Emergency: कौन थे जस्टिस जगमोहन सिन्हा, जिनके एक फैसले ने देश में लगवा दिया आपातकाल
48 Years of Emergency: 25 जून 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था। लेकिन देश में आपातकाल लगाने के फैसले के पीछे एक और फैसला था। जिसे करीब 13 दिन पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने दिया था।
12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा अपना फैसला सुनाने वाले थे. यह फैसला उस याचिका पर आने वाला था जिसे राज नारायण ने 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के निर्वाचन के खिलाफ दाखिल किया था। इस फैसले से पहले कई तरह से जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा को मनाने की कोशिश की गई. इन बातों का जिक्र कुलदीप नैयर की किताब ‘इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी’ में है।
Emergency In India : भारत में आपातकाल कब और क्यों लगा था? जानें किसने दिया था ये हुक्म
कुलदीप नैयर अपनी किताब में लिखते हैं कि श्रीमती इंदिरा गांधी के गृह राज्य उत्तर प्रदेश से एक सांसद इलाहाबाद गए। उन्होंने अनायास ही सिन्हा से पूछ लिया था कि क्या वे पांच लाख रुपये में मान जाएंगे। सिन्हा ने कोई जवाब नहीं दिया। बाद में उस बेंच में उनके एक साथी ने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि ‘इस फैसले के बाद’ सिन्हा को सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया जाएगा।
गुस्से में तय किया 12 जून को सुनाएंगे फैसला
गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव प्रेम प्रकाश नैयर ने देहरादून में उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से मुलाकात की थी और उनसे कहा था कि संभव हो तो इस फैसले को टाल दें. चीफ जस्टिस ने अनुरोध को सिन्हा तक पहुंचा दिया.सिन्हा इस बात से इतने नाराज हुए कि उन्होंने कोर्ट के रजिस्ट्रार को फोन घुमाया और कहा कि वो घोषित कर दे कि फैसला 12 जून को सुनाया जाएगा।
फैसले के वक्त दिल्ली में थी प्रधानमंत्री
यह ऐतिहासिक फैसला प्रयागराज हाई कोर्ट के कमरा नंबर 24 में सुनाया गया था। 258 पेज के फैसले के साथ सिन्हा कोर्ट रूम में मौजूद थेय़ उस दिन कोर्ट रूम में सिन्हा ने फैसला सुनाते हुए कहा- ‘याचिका स्वीकार की जाती है.’ पूरे कोर्ट रूम में अचानक से हर्षध्वनि सुनाई देने लगी। उधर जैसे ही फैसले की खबर इंदिरा गांधी के सबसे वरिष्ठ निजी सचिव निवळणे कृष्ण अय्यर शेषण तक पहुंची वो भागकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कमरे की तरफ उनको बताने निकले. रास्ते में उन्हें राजीव गांधी मिले। उन्होंने बताया कि इंदिरा जी को अपदस्थ कर दिया गया हैं।
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राजीव गांधी ने यह खबर अपनी मां इंदिरा को दी। हालांकि इंदिरा गांधी के चेहरे के भाव ज्यादा नहीं बदले। लेकिन जब उन्होंने यह खबर सुनी कि उन्हें 6 सालों तक किसी निर्वाचित पद पर बने रहने से भी वंचित कर दिया गया है तो वो थोड़ी चिंतित दिखी।
जस्टिस सिन्हा ने उन्हें दो आरोपों में दोषी करार दिया था। पहला दोष यह कि उन्होंने प्रधानमंत्री सचिवालय में आफिसर ऑन सोशल ड्यूटी यशपाल कपूर का इस्तेमाल चुनाव में अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए किया था। दूसरी अनियमितता यह थी कि इंदिरा गांधी ने जिन मंचों से चुनावी रैलियों को संबोधित किया था, उन्हें बनाने के लिए यूपी सरकार के अधिकारियों की मदद ली थी। उन अधिकारियों ने ही लाउडस्पीकरों और बिजली का बंदोबस्त किया था।