बुढ़ापे में लड़का ही सेवा करेगा, अदालतें ऐसी सोच को बढ़ावा न दें : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली : 7 साल के बच्चे के अपहरण और हत्या के मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों को पुरुष प्रधान समाज की सोच को त्यागने की सलाह दी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने बुधवार को कहा है कि समय बदल रहा है और अदालतों को पितृ सत्तात्मक सोच को त्याग देना चाहिए।
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बुढ़ापे में लड़का ही मां-बाप की सेवा करेगा, ऐसी सोच को अदालतें बढ़ावा न दें। इसके साथ ही मौत की सजा पाए अभियुक्त सुंदर उर्फ सुंदराजन को राहत देते हुए उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। शीर्ष कोर्ट ने इस मामले में हाई कोर्ट की कुछ टिप्पणियों पर आपत्ति जताई।
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हाई कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा है कि मृतक एक लड़का था, जो माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा था और वह छीन लिया गया। कोर्ट ने कहा कि अदालतों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि हत्या का अपराध पीड़ित परिवार के लिए समान रूप से दुखद है।
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यह मायने नहीं रखता कि मरने वाला बच्चा लड़का था या लड़की। सुंदराजन ने सुप्रीम कोर्ट में सजा को कम करने की अपील की थी। हालांकि कोर्ट ने कहा कि एक साल के इकलौते बच्चे की जानबूझ कर हत्या करने का अपराध बच्चे के माता-पिता के लिए बहुत दुखद है।