डेढ़ करोड़ के कोच ने कैसे MP को चैंपियन बनाया:सख्ती ऐसी- सेमीफाइनल के बाद प्लेयर्स के घर वालों तक के फोन बंद करा दिए थे
How the coach of 1.5 crores made MP the champion: Strictly like this – After the semi-finals, even the phones of the players’ families were switched off
मध्यप्रदेश पहली बार रणजी चैंपियन बना।
वो भी उस मुंबई को हराकर। जिसने सबसे ज्यादा 41 बार यह टूर्नामेंट जीता है। सभी कोच चंद्रकांत पंडित का गुणगान कर रहे हैं, जिन्होंने 2020 से पहले तक फिसड्डी रहे मध्यप्रदेश को दो साल के अंदर चैंपियन बना दिया।
इस जीत के पीछे कोच चंद्रकांत पंडित की सख्ती और अनुशासन भी है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मध्यप्रदेश के सेमीफाइनल में पहुंचने के बाद कोच ने खिलाड़ियों के साथ उनके घरवालों तक के नंबर बंद करा दिए थे। ताकि कोई मीडिया से बात न कर सके।
चलिए जानते हैं कि, पंडित ने कैसे एक औसत दर्जे की टीम की कायापलट कर उसे देश के सबसे बड़े घरेलू टूर्नामेंट की फाइनलिस्ट बना दिया।
एक कॉल पर मैदान में हाजिर होती थी टीम
पंडित ने सबसे ज्यादा जोर डिसिप्लिन पर दिया। चाहे खिलाड़ियों के आने-जाने की टाइमिंग हो, या ड्रेस कोड, या फिर टीम बिहेवियर, पंडित रत्ती भर भी अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करते थे। पंडित के एक कॉल पर टीम प्रैक्टिस के लिए ग्राउंड पर होती थी। एक बार तो उन्होंने रात 12 बजे खिलाड़ियों को ग्राउंड पर उतार दिया था। वे उस दिन खिलाड़ियों की अलर्टनेस देखना चाहते थे। यदि कोई खिलाड़ी ट्रेनिंग में लेट होता था तो उसे पूरा सेशन छोड़ना होता था। यदि रवानगी के समय कोई लेट हो जाए तो टीम उसे वहीं छोड़कर चली जाती थी। बाद में खिलाड़ी खुद के खर्चे से टीम ज्वाइन करता था।
जूनियर-सीनियर कल्चर खत्म करने के लिए ‘भैया’ शब्द बैन
कोच ने टीम में जूनियर-सीनियर कल्चर खत्म करने के लिए कोच ने ‘भैया’ के संबोधन पर बैन लगा दिया था। सब एक दूसरे को नाम से ही बुलाते थे, फिर चाहे वह जूनियर हो या सीनियर। कोच का तर्क था कि यदि आप किसी की इज्जत करते हो तो दिल से करो, जबान से नहीं। खिलाड़ियों को मेंटली टफ करने के लिए महू स्थित आर्मी इन्फेंट्री.स्कूल में खिलाड़ियों के सेशन कराए। इसके लिए सेना से विशेष इजाजत ली गई। इतना ही नहीं, वहां के एक्सपर्ट को होलकर स्टेडियम बुलाकर खिलाड़ियों को ट्रेन भी कराया।
युवाओं के लिए सिलेक्टर्स से लड़ जाते थे
पंडित मजबूत टीम बनानवे के लिए डिविजनल मैचों और ट्रायल के माध्यम से खिलाड़ियों को स्काउट करते थे। जो खिलाड़ी टैलेंटेड दिखता उसे कैंप में बुलाते थए। सूत्र यहां तक बताते हैं कि इस सीजन में एक खिलाड़ी के चयन पर उनकी चयनकर्ताओं से भी बहस हो गई थी। यहां तक कि उनके इस्तीफे की खबरें भी आईं।
हर खिलाड़ी का लेखा-जोखा रखते हैं
कोच पंडित अपने हर खिलाड़ी का डोजियर तैयार रखते हैं। इसमें उसका परफॉर्मंस, उसका ट्रेनिंग शेड्यूल सब कुछ होता है। हर दिन टीम मीटिंग होती थी। इसमें कोच हर खिलाड़ी को उसके खेल से संबंधित टिप्स देते थे और अगले दिन उस पर काम होता था।
मिक्स्ड कैंपिंग काम आई
पंडित ने दो साल के कार्यकाल में टीम के लिए 405 दिन ट्रेनिंग कैंप लगाया। बारिश में कैंप का आयोजन होता था। पंडित ने रणजी टीम के साथ-साथ महिला टीम और एज ग्रुप की टीमों के खिलाड़ियों को भी हर तरह की चुनौतियों के लिए ट्रेन किया। पंडित के कोच बनने के बाद एक अंडर-19 क्रिकेटर भी रणजी टीम के खिलाड़ियों के साथ नेट्स कर सकता था।
खुद टैलेंट स्काउट किया
पंडित क्रिकेट मैच देखना खूब पसंद करते हैं। वे एज ग्रुप क्रिकेट के डिविजनल मैच देखने पहुंच जाते थे। यदि कोई टैलेंटेट खिलाड़ी दिखता तो उसे कैंप के लिए बुला लेते थे।
मैच सिमुलेशन भी काम आया
कैंप से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि इस सीजन में मैच सिमुलेशन प्रैक्टिस भी काम आई। वे कैंप के दौरान खिलाड़ियों को सिचुएशन दे देते थे और उसके हिसाब से खेलने को कहते थे। इस दौरान हर खिलाड़ी के कान में हियरिंग डिवाइस लगी होती थी और कोच बाउंड्री के बाहर वॉकी टॉकी से इंस्ट्रक्शन देते थे।
आचरेकर सर से सीखे क्रिकेट के गुर
चंद्रकांत पंडित ने क्रिकेट की बारीकियां सचिन तेंदुलकर के गुरु और मशहूर क्रिकेट कोच रमाकांत आचरेकर से सीखी हैं। बतौर खिलाड़ी पंडित ने टीम इंडिया के लिए पांच टेस्ट और 36 वनडे मुकाबले खेले हैं। वे 1986 की वर्ल्ड कप टीम का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने अपने कॅरियर में 171 टेस्ट और 290 वनडे रन बनाए हैं।
उनके डोमेस्टिक करियर की बात करें तो मुंबई की ओर से खेले 138 फर्स्ट क्लास मैचों में पंडित के नाम 48.57 के औसत से 8,209 रन दर्ज हैं। उन्होंने 22 शतक और 42 अर्धशतक जड़े। उनका सर्वाधिक स्कोर 202 रन रहा।