जहां आज भी मौजूद हैं सांची और सारनाथ जैसे स्तूप, दीवारों पर उकेरे गए हैं शानदार चित्र, रीवा के Deur कोठार का पूरा इतिहास जानिए
रीवा से 67 किलोमीटर दूर इतिहास को समेटे हुए एक जगह है देउर कोठार। प्रयागराज की ओर जाने वाले रास्ते में पड़ले वाली इस जगह में मौजूद हैं बौद्ध स्तूप,शैलाश्रय, विशाल चट्टानें और हर-भरे वन। आज के इस अंक में हम आपको देउर कोठार के इतिहास के बारे में बताएंगे।
रीवा के देउर कोठार में आज भी मौजूद हैं बौद्धकालीन स्तूप
- सफेद शेरों की नगरी रीवा में मौजूद हैं बौद्धकालीन स्तूप
- 67 किलोमीटर दूर देउर कोठार में मिल चुके हैं बौद्ध स्थापत्य के अति जरूरी पुरा अवशेष
- विशाल चट्टानें और हरे-भरे वन पूरे क्षेत्र को बनाते हैं आकर्षक
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यहां बौद्ध स्तूप, शैलाश्रय और ब्राह्मी लिपि में दानदाताओं के नाम के अलावा भी कई ऐसी चीजें हैं जो इस पूरे क्षेत्र को आकर्षक बनाती हैं। यहां मौजूद हैं विशाल चट्टानें, हरे-भरे वन और ऊपर से नीचे की ओर दूर तक दिखाई देती हरियाली। पार्किंग स्थल से स्तूप क्रमांक 1 की सीमा तक पत्थर के बड़े टुकड़ों द्वारा पैदल चलने हेतु स्थाई मार्ग का निर्माण बहुत ही सलीके से कराया गया है। रीवा से प्रयागराज की ओर जाने पर पड़ने वाला सोहागी और चाकघाट जाने वाले लोगों के लिए भी यह ऐतिहासिक जगह पास है।
पुरातात्विक महत्व के साथ प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर होने के कारण देउर कोठार का क्षेत्र सैलानियों को अपनी और आकर्षित करने की पर्याप्त सामर्थ्य रखता है। मुख्य स्थल तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग काफी अच्छा है किंतु सुनसान होने के कारण सैलानियों के वाहन तथा उनकी स्वयं की सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। सैलानियों तथा शोधार्थियों को यहां पर समय बिताने के लिए व्यवस्थित जलपान गृह इत्यादि भी नहीं है।