कहां से लाई गई थी भगवान राम की मूर्ति
23 दिसंबर 1949 की सुबह 7 बजे अयोध्या थाने के तत्कालीन एसएचओ रामदेव दुबे रूटीन जांच के दौरान मौके पर पहुंचे, तो वहां सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. रामभक्तों की भीड़ दोपहर तक बढ़कर 5000 लोगों तक पहुंच गई. अयोध्या के आसपास के गांवों से श्रद्धालुओं की भीड़ बालरूप में प्रकट हुए भगवान राम के दर्शन के लिए टूट पड़ी. हर कोई ‘भय प्रकट कृपाला’ गाता हुआ विवादित स्‍थल की ओर बढ़ा चला जा रहा था. भीड़ को देखकर पुलिस और प्रशासन के हाथपांव फूलने लगे. उस सुबह बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में वही मूर्ति प्रकट हुई थी, जो कई दशकों से राम चबूतरे पर विराजमान थी. इनके लिए वहीं की सीता रसोई या कौशल्या रसोई में भोग बनता था.

किसने पंडित नेहरू को रोक दिया?
उस वक्त फैजाबाद के जिलाधिकारी (DM) केके नायर हुआ करते थे. उन्हें 7 महीने पहले ही फैजाबाद डीएम की कुर्सी मिली थी. मूल रूप से केरल के रहने वाले नायर 1907 में जन्मे थे और अलप्पुझा के गुटनकाडु गांव के रहने वाले थे. 1930 बैच के आईसीएस अफसर नायर, दक्षिणपंथी माने जाते थे. प्रदेश सरकार के जरिये जब नायर को पता चला कि पीएम नेहरू अयोध्या आना चाहते हैं तो उन्होंने साफ मना कर दिया. नायर ने कहा कि प्रधानमंत्री नेहरू के अयोध्या आने से हालात और तनावपूर्ण हो सकते हैं और काबू करना मुश्किल हो जाएगा.

फैजाबाद के डीएम केके नायर (KK Nayar) पर यह भी आरोप लगा कि वह हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) की तरफ झुकाव रखते हैं और इसी के चलते उन्होंने प्रधानमंत्री को अयोध्या आने से मना किया. एक पक्ष अपने इस दावे के समर्थन में कहता है कि इसका उदाहरण है कि जब 22-23 दिसंबर की दरम्यानी रात विवादित स्थल पर रामलला की मूर्ति रखी गई तो नायर ने अगले दिन दोपहर तक लखनऊ में आला अफसरों को इसकी सूचना दी.

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