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रीवा के सुपारी के खिलौनों को जीआइ टैग दिलाने की उठी मांग, 9 दशक पुरानी है ये परंपरा

Supari Ke Khilone रीवा  : गोविंदगढ़ में होने वाले सुन्दरजा आज को जीआई टैग के मिलने के बाद रीवा के कुंदेर परिवार के लोगों ने सुपारी के खिलौनों को जीआई टैग देने की मांग शुरू कर दी है। बता दें कि व्हाइट टाइगर सुन्दरजा के पूर्व से ही रीवा रियासत में सुपारी के खिलौने 9 दशक से बनते आ रहे हैं। यही कारण है कि कभी विंध्य की राजधानी रहे रीवा व रीवा जिले में आने वाले विशिष्ट नेता, अभिनेता व नामचीन हस्तियों के आतिथ्य में उन्हें सुपारी के खिलौने देने की परम्परा वर्षो से चली आ रही है। ऐसे में जब सुन्दरजा आम को जीआई टैग दे दिया गया है, रीवा जिले की रिमही जनता व कुंदेर परिवार के लोग सुपारी के खिलौनों को जीआई टैग देने की मांग प्रमुखता से उठाने लगे हैं।

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किदवंती पर एक नजर

सही तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन स्थानीय बयोवृद्ध जगजीवन लाल तिवारी ने नईदुनिया से बातचीत करते हुए बताया कि सुपारी का खिलौना बनने की परम्परा तकरीबन 9 दशक से अधिक पुरानी है। बता दें कि 1919 में रीवा रियासत के तत्कालीन महाराजा गुलाब सिंह जू देव सुपारी से बने हुए खिलौने का उपहार तत्कालीन ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया को उपहार रूवरूप दिया था। विंध्य प्रदेश बन जाने पर यहां आने वाले अतिथियों का स्वागत इन्हीं सुपारी से बने गणेश प्रतिमाओं से किया जाता रहा है।

1956 में मध्यप्रदेश में विंध्य प्रदेश के विलय होने के बाद भी यह परम्परा बद्स्तूर जारी रही। मंचों से लेकर आतिथियों के स्वागत में इसका इस्तेमाल होता रहा है। 2008 के चुनावी सभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे रीवा के नाम पर जीआई टैग दिलाने की बात कही थी। लेकिन उसके बाद से अब तक कोई ठोस पहल नही की गई। इस संबंध में कलेक्टर प्रतिभा पाल ने कहा कि हम आगे आने वाले दिनों में यह प्रसास करेंगे कि सुपारी के खिलौनों को भी जीआई टैग मिल सके।

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ऐसे हुई थी शुरुआत

इसकी शुरुआत रीवा राजघराने द्वारा सुपारी को पान के साथ इस्तेमाल करने के लिए अलग-अलग डिजाइन से कटवाने से शुरुआत की गई थी। उसी की डिजाइन बनाते-बनाते कलाकृतियां भी सामने आने लगीं। कुंदेर परिवार तीन पीढ़ियों से यह काम कर रहा है। इनका यह प्रमुख पेशा है। रीवा की पहचान सुपारी के खिलौने बन गए हैं।

1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रीवा आई थीं। उस दौरान उन्हें सुपारी के खिलौने भेंट किए गए थे। दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के बोर्ड आफ डायरेक्टर के पैनल में सुपारी के खिलौने बनाने वाले रामसिया कुंदेर को भी शामिल किया। कई बड़े कार्यक्रम में इंदिरा गांधी ने परिचय कराकर कलाकार का सम्मान भी बढ़ाया।

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सिंदूर की डिब्बी से हुई थी शुरुआत

रीवा के फोर्ट रोड में सुपारी से मूर्तियां और खिलौने बनाने वाले दुर्गेश कुंदेर तीसरी पीढ़ी के कलाकार हैं। बताते है कि जहां हमारे वंशज की बात है तो सर्वप्रथम सुपारी का खिलौना बनाने का काम हमारे परदादा भगवानदीन ने शुरू किया था। सुपारी से सर्वप्रथम उन्होंने सिंदूरदान बनाकर महाराजा गुलाब सिंह को गिफ्ट किया था।

इसके पहले महाराजा के आदेश पर ही राज दरबार के लिए लच्छेदार सुपारी काटी जाती थी। महाराजा मार्तण्ड सिंह को छड़ी गिफ्ट की गई थी, जिस पर 51 रुपए का इनाम दिया गया था। समय के साथ बाजार की मांग के अनुसार खिलौने बनाए जाने लगे। इन दिनों शहर का ऐसा कोई भी बड़ा कार्यक्रम नहीं होता जिसमें सुपारी की गणेश प्रतिमा गिफ्ट नहीं की जाती हो। बाहर से आने वाले अतिथि को सुपारी के ही खिलौने दिए जाते हैं।

गणेश प्रतिमा सबसे अधिक लोकप्रिय

पहले सुपारी की स्टिक, मंदिर सेट, कंगारू सेट, टी-सेट, महिलाओं के गहने, लैंप आदि पर अधिक फोकस रहता था लेकिन इन दिनों गणेश प्रतिमा ही सबसे अधिक लोकप्रिय हो रही है। दुर्गेश कुंदेर का कहना है कि लक्ष्मी जी की मूर्ति लोग गिफ्ट करने के लिए नहीं बल्कि अपने घरों में रखने के लिए लेते हैं। गिफ्ट करने के लिए गणेश प्रतिमा ही सबसे अधिक खरीदी जा रही है

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