Baghela Museum Rewa : ऐसा बर्तन जो बता देता है भोजन में जहर है, जादुई ताला चोरों का पकड़ लेता है हाथ  

रीवा किले में स्थित संग्रहालय में मौजूद हैं कई ऐसी सामग्रियां जो दूसरी जगह नहीं 

रीवा। रीवा रियासत काल की वस्तुओं के साथ ही राजघराने की अन्य कई महत्वपूर्ण वस्तुओं का संग्रह रीवा किले में है। यहां पर बाघेला म्यूजियम स्थित है, जहां पर कई ऐसी वस्तुएं संग्रहित की गई हैं जो देश के दूसरे हिस्सों में नहीं मिलती। यह संग्रहालय रीवा वासियों को अपना इतिहास जानने और गौरवबोध का केन्द्र भी है। करीब चार सौ से अधिक वर्षों की झलक इस संग्रहालय में दिखती है। यह संग्रहालय लोगों व आने वाली पीढिय़ों और अतीत की स्मृतियों के बीच का पुल है, जो इतिहास से जोड़ता है। इन संग्रहालयों का महत्व लोगों को समझाने के उद्देश्य से ही हर साल 18 मई को विश्व संग्रहालय दिवस मनाया जाता है।

रीवा के बाघेला म्यूजियम में महाराजाओं और योद्धाओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले अस्त्र-शस्त्र मौजूद हैं, इनकी विशेषताएं अलग-अलग रही हैं। साथ ही कई ऐसी नायाब वस्तुएं हैं जिनकी विशिष्टता अलग है। यह संग्रहालय रियासतकाल में ही स्थापित किया गया था, जो पहले गोविंदगढ़ के किले में था। वर्ष 1971 में गोविंदगढ़ किले का आधिपत्य रीवा राजघराने से ले लिया गया। तब महाराजा मार्तण्ड सिंह ने इसे रीवा किला लेकर आए। कुछ समय के लिए पीली कोठी में संग्रहालय बनाया गया, इसके बाद फिर से किला में स्थापित किया गया।
यह संग्रहालय महाराजा मार्तंड सिंह जूदेव चेरिटेबल ट्रस्ट की देखरेख में संचालित किया जा रहा है। तब के महाराजाओं, महारानियों और राजपरिवार के उपयोग की ऐसी वस्तुएं जो अब दुर्लभ हैं, वह भी संग्रहालय में रखी गई हैं। तलवार, भाला एवं कई अन्य औजार आकर्षण का केन्द्र हैं। सरकार एवं संग्रहालय संचालित करने वाले ट्रस्ट से अनुमति लेकर फिल्म अशोका में यहां की तलवारों का उपयोग किया गया था। जिसमें अभिनेता शाहरुख खान रीवा की तलवारों के साथ ही फिल्म में नजर आए थे।
विशेष पात्र – संग्रहालय में भोजन का एक ऐसा पात्र मौजूद है, जो अपने आप में विशेष है। यह महाराजा गुलाब सिंह की शादी में जोधपुर के राजपरिवार की ओर से वर्ष १९१९ में दिया गया था। यह सफेद संगमरमर का है। इसमें यदि जहर मिला भोजन परोसा जाए तो पात्र का रंग बदलने लगता था। उस जमाने में राजा-महाराजाओं को खाने में जहर साजिश के तहत दिया जाता रहा है। इसलिए ऐसा पात्र मिला था जो ऐसी साजिश को नाकाम करने वाला था।

पेन पिस्टल – रीवा के संग्रहालय की एक बड़ी पहचान यहां पर मौजूद पेन पिस्टल से भी होती रही है। यह ऐसी पिस्टल है जो पेन के आकार है। तब के महाराजा इसे हर समय अपने पास रखते थे, ताकि आपात स्थिति आने पर उसका प्रयोग कर सकें। इसकी विशिष्टता के चलते ही करीब दस वर्ष पहले कुछ बदमाशों ने किले में रात्रि में हमला बोलकर वहां पर मौजूद चौकीदार को मारकर पेन पिस्टल सहित अन्य महत्वपूर्ण वस्तुएं ले गए थे। बाद में पुलिस ने उसे बरामद कर लिया है।

चोर ताला – एक ऐसा ताला जो किसी दरवाजे पर नहीं लगाया जाता था बल्कि किले के भीतर ही काम करने वाले चोर दिमाग लोगों की पहचान के उद्देश्य से बनाया गया था। यह करीब एक क्विंटल वजन का है जिसे कोई अकेले उठा भी नहीं सकता। इसके भीतर कुछ पैसे या जेबर रखे जाते थे, जिन्हें लेने के लिए यदि कोई हाथ डालता था तो उसका हाथ फंस जाता था। इसी से पहचान हो जाती थी कि संबंधित व्यक्ति की नीयति कैसी है।
सफेद बाघ मोहन की गर्दन – दुनियाभर में सफेद बाघ जहां भी हैं वह मोहन के वंशज माने जाते हैं। मोहन को सीधी(कुसमी) के जंगल से पकड़कर गोविंदगढ़ किले में रखा गया था। कहा जाता है कि यह पहला जीवित सफेद बाघ पकड़ा गया था। मोहन की मौत के बाद उसका चमड़ा निकाला गया और गर्दन का हिस्सा म्यूजियम में सहेज कर रखा गया है। जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।
– 56 छुरी- महाराजाओं एवं योद्धाओं के पहनावे के साथ एक ऐसा विशेष पहनावा था जिसमें 56 छुरी लगाई जाती थी। यदि युद्ध में घायल भी हो गए तो अपने नजदीक स्थित दुष्मन को वह जख्मी कर सकते थे।
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किला स्थित संग्रहालय अपने आप में महत्वपूर्ण है। यहां पर कई ऐसी सामग्रियां हैं जो देश-दुनिया के दूसरे हिस्सों में नहीं हैं। सफेद बाघों के जनक मोहन का सिर, चोर ताला, पेन पिस्टल और दूसरे औजार ऐसे हैं जो दुर्लभ हैं। यहां पर मौजूद सामग्री नई पीढ़ी को इतिहास जानने एवं अध्ययन करने के भी काम आती है। पहले यह संग्रहालय गोविंदगढ़ किले में था, वहां से रीवा किला लाया गया। कुछ समय के लिए पीली कोठी में भी था लेकिन अब रीवा किले में है।
असद खान, इतिहासकार

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