दुनिया का इकलौता महामृत्युंजय मंदिर (Mahamrityunjay Mandir) यहाँ है स्थापित

दुनिया का इकलौता शिवालय ,यहाँ पर स्थापित है

रीवा  रियासत के तत्कालीन शासक महाराजा भाव सिंह ने इसके नीव राखी थी यहाँ पर एक विशालकाय मंदिर बनवाया था , यहाँ पर प्रतिदिन हजारों की सख्या में भक्त आते हैं मन्नतें मांगते हैं , सावन के महीने में तो कई लाख की संख्या में भक्त आते है, यहाँ पर आने वाले सभी भक्त भगवान महामृत्युंजय (Mahamrityunjay Mandir)का जप करते हैं।





रीवा. शिव के अनेक रूप हैं। उन्हीं रूपों में से एक महामृत्युंजय(Mahamrityunjay Mandir) भी है। कहते हैं कि इस रूप की पूजा और मंत्र के जाप से आने वाली हर विपत्ति टल जाती है। भगवान भोलेनाथ का यह रूप रीवा रियासत के किले में विराजमान है। सावन के महीने में प्रदेश भर से तो लोग यहां दर्शन के लिए आते ही हैं, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार से भी लोग मनोकामना लेकर पहुंचते हैं। यहां रुक कर महामृत्युंजय मंत्र का जाप और अनुष्ठान कराते हैं।




मिलती है अकाल मृत्यु से मुक्ति

पुजारी महासभा के अध्यक्ष अशोक पाण्डेय बताते हैं कि यह दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां भोलेनाथ के महामृत्युंजय रूप के दर्शन होते हैं। अकाल मृत्यु, रोग और हर विपत्ति से मुक्ति देने वाला मंदिर है। वैसे तो भगवान भोलेनाथ के तीन नेत्र हैं लेकिन यहां मौजूद शिवलिंग में तीन नहीं बल्कि एक हजार नेत्र (छिद्र) विद्यमान है। शिवलिंग का रंग सफेद है जो मौसम के अनुसार बदल जाता है। शिव पुराण के मुताबिक भगवान भोलेनाथ ने महासंजीवनी महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति की थी।




इस मंत्र का जाप यहां पुजारियों के द्वारा कराया जाता है। महाशिवरात्रि, सावन के सोमवार और बसंत पंचमी, मकर संक्रांति पर यहां मेले जैसा माहौल होता है। बारह महीने यहां शिवभक्त आते हैं। रीवा शहर में निवासरत ज्यादातर लो सुबह – सुबह दर्शन कर अपने दिन का शुरुआत  करते हैं

क्या है पौराणिक महत्व

मंदिर की स्थापना को लेकर किदवंती है कि बांधवगढ़ से राजा शिकार के लिए आए थे। शिकार के दौरान राजा ने देखा कि एक शेर चीतल को दौड़ा रहा है। जब वह मंदिर के समीप आया तो शेर चीतल का शिकार किए बिना लौट गया। राजा यह देखकर हैरत में पड़ गए। कहते हैं कि राजा ने खुदाई कराई। गर्भ गृह से स्वेत शिवलिंग निकला .




राजा भाव सिंह ने बनवाया था मंदिर

बताते हैं कि महाराजा विक्रमादित्य ने जब बांधवगढ़ से राजधानी रीवा की तो उन्होंने किले का निर्माण कराया। उस दौरान यह मंदिर चबूतरे में था। जिसे आगे चलकर महाराजा भाव सिंह ने भव्य मंदिर का स्वरूप दिया। रीवा रियासत के राजा सुबह-शाम यहां पूजा करते थे। प्रजा भी दर्शन को उमड़ती थी। सदियों से चली आ रही राम बारात निकालने की शुरुआत भगवान महामृत्युंजय की पूजा-अर्चना से होती है। भगवान जगन्नाथ रथयात्रा लक्ष्मणबाग से निकलकर यहां जरूर आती है




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