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जहां आज भी मौजूद हैं सांची और सारनाथ जैसे स्तूप, दीवारों पर उकेरे गए हैं शानदार चित्र, रीवा के Deur कोठार का पूरा इतिहास जानिए

रीवा से 67 किलोमीटर दूर इतिहास को समेटे हुए एक जगह है देउर कोठार। प्रयागराज की ओर जाने वाले रास्ते में पड़ले वाली इस जगह में मौजूद हैं बौद्ध स्तूप,शैलाश्रय, विशाल चट्टानें और हर-भरे वन। आज के इस अंक में हम आपको देउर कोठार के इतिहास के बारे में बताएंगे।

रीवा के देउर कोठार में आज भी मौजूद हैं बौद्धकालीन स्तूप


    • सफेद शेरों की नगरी रीवा में मौजूद हैं बौद्धकालीन स्तूप
    • 67 किलोमीटर दूर देउर कोठार में मिल चुके हैं बौद्ध स्थापत्य के अति जरूरी पुरा अवशेष
    • विशाल चट्टानें और हरे-भरे वन पूरे क्षेत्र को बनाते हैं आकर्षक
    रीवा: अभी पिछले हफ्ते ही अपनी जन्मभूमि रीवा जाना हुआ। जहां आप पैदा हुए, पले-बढ़े और आपका पूरा बचपन बीता वहां जाना एक अलग ही सुखद एहसास है। आम दिनों की तरह इस बार भी रीवा आने से पहले कई प्लान्स थे। कुछ दिनों के लिए ही आना हुआ था सो सब इसी बीच समेटना था। रीवा आने से पहले घूमने जाने की लिस्ट तो पहले से तैयार हो जाती है। इस बार भी कुछ वैसा ही हुआ। हालांकि इस बार घूमने की लिस्ट में एक जगह का जिक्र नहीं था। वह थी रीवा के उत्तर की ओर प्रयागराज रोड के पास स्थित देउर कोठार। यूं तो बचपन में एक दो बार ही आना हुआ था सो लगा यहां भी हो लिया जाए।



    रीवा से देउर कोठार होगा यही कोई 66 से 67 किलोमीटर। गाड़ी से आपको लगेंगे 1 घंटे से सवा घंटे करीब। अब आप पूछेंगे कि भाई आखिर देउर कोठार में ऐसा खास क्या है। देउर कोठार में मौजूद है बौद्ध स्तूपों के साथ बताने के लिए एक महान इतिहास, वह इतिहास जो आप गूगल की दुनिया में सिंगल क्लिक से ढूढ़ लेते हो



    हम आज रीवा के समीप स्थित उसी देऊर कोठार के इतिहास के बारे में आपको तफ्तीश से जानकारी देंगे। बताएंगे सफेद शेरों की नगरी रीवा और तानसेन की धरती कहे जाने वाली विंध्य प्रदेश की पूर्व राजधानी रीवा में इस देउर कोठार की कितनी अहमियत है। क्यों आखिर यह पर्यटन और जानकारी परख लिहाज से इतना खास है।

    देउर कोठार में क्या है खास
    रीवा से उत्तरी छोर पर प्रयागराज नैशनल हाइवे के कटरा स्टेशन से 3.5 किलोमीटर दूरी पर स्थित है देउर कोठार। मध्य प्रदेश सर्वेक्षण की मदद से किए गए उत्खनन में साल 1999 से 2000 के बीच देउर कोठार क्षेत्र में बौद्ध स्थापत्य के अति जरूरी पुरा अवशेष पाए गए थे। इनमें स्तूप के स्पष्ट अवशेष साफ तौर पर दिखाई देते हैं। इन पुरावशेषों की खोज का श्रेय डॉक्टर फणिकांत मिश्र एवं स्थानीय शोधकर्ता अजीत सिंह को जाता है। मौर्य एवं शुंग काल के यह अवशेष ईसा पूर्व दूसरी तथा तीसरी शताब्दी के मध्य के हैं।




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    शोध/ अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि यहां पर बहुत बड़ा बौद्ध स्मारक मौर्य एवं शुंग काल में रहा होगा । इस स्थल का संबंध भरहुत तथा कौशांबी से भी रहा होगा। यहां पर कई शैलाश्रय भी हैं जहां आदिमानव की तरफ से लाल सफेद रंग से भित्ति चित्र बनाए गए थे। यहां कुल 40 स्तूपों के अवशेष अब तक प्राप्त हुए हैं जिनमें से ईंट द्वारा निर्मित स्तूप क्रमांक एक अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह स्तूप चौकोर चबूतरे के ऊपर निर्मित है जिसके चारों ओर विशाल प्रदक्षिणा पथ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यहां ब्राह्मी लिपि में दानदाताओं के नाम भी उत्कीर्ण हैं। स्तूप के पश्चिमी क्षेत्र में लाल बलुआ पत्थर से निर्मित स्तंभ के कुछ टुकड़े पाए गए हैं, जिनमें से एक टुकड़े पर भगवान बुद्ध को समर्पित 6 पंक्तियों वाला ब्राह्मी लिपि में लेख प्राप्त हुआ है। ऐसा माना जाता है कि स्तूप के पश्चिमी क्षेत्र में प्रवेश द्वार रहा होगा। 
    विशाल चट्टानें और हरे-भरे वन पूरे क्षेत्र को बनाते हैं आकर्षक
    यहां बौद्ध स्तूप, शैलाश्रय और ब्राह्मी लिपि में दानदाताओं के नाम के अलावा भी कई ऐसी चीजें हैं जो इस पूरे क्षेत्र को आकर्षक बनाती हैं। यहां मौजूद हैं विशाल चट्टानें, हरे-भरे वन और ऊपर से नीचे की ओर दूर तक दिखाई देती हरियाली। पार्किंग स्थल से स्तूप क्रमांक 1 की सीमा तक पत्थर के बड़े टुकड़ों द्वारा पैदल चलने हेतु स्थाई मार्ग का निर्माण बहुत ही सलीके से कराया गया है। रीवा से प्रयागराज की ओर जाने पर पड़ने वाला सोहागी और चाकघाट जाने वाले लोगों के लिए भी यह ऐतिहासिक जगह पास है। 



    वहीं देउर कोठार से देखने पर यही सोहागी और चाकघाट का मनोरम दृश्य भी दिखाई पड़ता है। पार्किंग स्थल से स्तूप क्रमांक 1 की सीमा तक पत्थर के बड़े टुकड़ों द्वारा पैदल चलने हेतु स्थाई मार्ग का निर्माण बहुत ही सलीके से कराया गया है। मुख्य सड़क के रास्ते अंदर का मार्ग का भी अच्छा है। यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।



     
    सैलानियों को आकर्षित करने की पूरी क्षमता लेकिन सूनसान




    पुरातात्विक महत्व के साथ प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर होने के कारण देउर कोठार का क्षेत्र सैलानियों को अपनी और आकर्षित करने की पर्याप्त सामर्थ्य रखता है। मुख्य स्थल तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग काफी अच्छा है किंतु सुनसान होने के कारण सैलानियों के वाहन तथा उनकी स्वयं की सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। सैलानियों तथा शोधार्थियों को यहां पर समय बिताने के लिए व्यवस्थित जलपान गृह इत्यादि भी नहीं है। 






    रीवा जिले का वह स्थान जहां शैलाश्रयों के साथ आदिमानव के भित्ति चित्र के पुरा अवशेष हों तथा जो स्थान मौर्य एवं शुंग कालीन बौद्ध स्थापत्य के कारण महत्वपूर्ण होने के साथ प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हो उसका इस कदर उपेक्षित होना चिंता का विषय है। थोड़े प्रचार प्रसार एवं सामान्य मूलभूत व्यवस्थाओं के पश्चात यह स्थान रीवा जिले के महत्वपूर्ण पर्यटन केंद्र में तब्दील हो सकता है।

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