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आकर्षण का केंद्र बने ये तीन टूरिस्ट स्पॉट, जानिए क्या होने वाला है नया

एमपी के तीन टूरिस्ट स्पॉटों को निजी हाथों में देने की तैयारी…। अव्यवस्था का शिकार हो रहे टूरिस्ट स्पॉट, अब आउटसोर्स पर उपलब्ध होंगी सुविधाएं..




रीवा। जिले के तीन टूरिस्ट स्पॉट आकर्षण का केंद्र बने हैं। इन स्थानों को और अधिक आकर्षक और पर्यटकों के लिए अनुकूल बनाने की कवायद तेज हो गई है। जल्द ही यह स्पाट पर्यटन के नक्शे पर भी नजर आने वाले हैं। इसी सिलसिले इनका रखरखाव और व्यवस्था निजी हाथों में देने की तैयारी चल रही है।





वन विभाग के क्षेत्रफल में आने सिरमौर क्षेत्र में तीन पिकनिक स्पॉटों को कुछ साल पहले ही विकसित किया गया था। शासन ने सितंबर 2017 में अधिसूचना जारी करते हुए रीवा जिले के सिरमौर वन क्षेत्र में स्थित पावन घिनौची धाम (पियावन), आल्हा घाट एवं टोंस वाटरफाल स्थलों को इको पर्यटन केंद्र घोषित किया था।




इसके साथ ही बोर्ड ने इन स्थानों के विकास के लिए कार्ययोजना तैयार की और उसके लिए करीब एक करोड़ रुपए भी आवंटित किए। करीब डेढ़ वर्षों के अंतराल में इन तीनों स्थलों का विकास भी हुआ। इसकी वजह से पर्यटकों का आकर्षण बढ़ा। हर मौसम में लोगों की आवाजाही शुरू हो गई।




रीवा जिले में जलप्रपातों की बड़ी शृंखला है। इनमें पुरवा जलप्रपात, क्योंटी जलप्रपात, बहुती जलप्रपात, चचाई, टोंस वाटर फाल, पावन घिनौचीधाम, आल्हाघाट, खंधो मंदिर परिसर, गोविंदगढ़ तालाब सहित अन्य कई प्रमुख स्थल हैं जहां लोग पहुंचते हैं।




There is a large range of waterfalls in Rewa district. These include Purva Falls, Kyonti Falls, Bahuti Falls, Chachai, Tons Water Falls, Pavan Ghinouchidham, Alhaghat, Khandho Temple Complex, Govindgarh Talab and many other important places where people reach.

बवाल के बाद से टोंस वाटरफाल में प्रवेश बंद

पिकनिक स्पॉटों में प्राकृतिक वातावरण पर्यटकों को आकर्षित कर रहा था। प्रदेश के साथ ही समीपी राज्य उत्तर प्रदेश से भी बड़ी संख्या में लोग हर दिन आ रहे थे। वर्ष 2020 के अक्टूबर में भीड़ कई दिनों तक लगातार अनियंत्रित रही और आसपास में विवाद भी हुआ। तोडफ़ोड़ की स्थिति को वन विभाग के कर्मचारी संभाल नहीं पाए और पुलिस की मदद ली।




पुलिस ने भी एक-दो दिन मदद के बाद हाथ खड़े कर दिए। इसके बाद वन विभाग के अधिकारियों ने तय किया कि जब तक व्यवस्था बेहतर नहीं होगी तब तक टोंस वाटर फाल में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। इससे हर महीने लाखों रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है।




पहले चरण में इनकी व्यवस्थाएं सौंपने की तैयारी

घिनौची धाम: यहां पर धरती से करीब 200 फीट नीचे दो जल प्रपातों का संगम देखने को मिलता है। प्राचीन शिवलिंग है जहां पर जलप्रपात से स्नान होता है। यहां 35.50 लाख रुपए खर्च किए गए हैं। तीन साल से रखरखाव के इंतजाम नहीं, सुरक्षा गार्ड दिन में दो रहते हैं।




टोंस वाटर फाल: यहां पर जलप्रपातों की शृंखला है, इसे 36.50 लाख रुपए की लागत से विकसित किया गया। 20 अक्टूबर 2020 से अब तक बंद है। बड़ी संख्या में लोग आते हैं प्रवेश नहीं मिलने पर वापस लौट रहे हैं। कुछ चोरी-छिपे प्रवेश ले रहे हैं।




आल्हाघाट: यहां पर लोकदेव आल्हा की तपोस्थली रही है। पुरातत्वविद अलेक्जेंटर कनिंघम ने इस स्थान को प्रकाश में लाया था। वर्ष 1883 में शिलालेख देखकर इसे प्रकाशित कराया था। तीन शिलालेख हैं, महाराजा नर्सिंगदेव का संवत 1216 ईसवी का उल्लेख है। गणेश और आल्हा की प्रतिमा आकर्षक रूप से उकेरी गई हैं। यहां डेढ़ सौ फीट लंबी गुफा है। 28.50 लाख की लागत से विकसित किया गया है। यह खुला है, लोग पहुंच रहे हैं।





चोरी-छिपे पहुंच रहे लोग, हादसों का डर

पिकनिक स्पाट में आधिकारिक रूप से विभाग ने प्रवेश पर रोक चाहे भले ही लगा रखी है लेकिन दूर-दराज से आने वाले लोग भीतर तक पहुंच रहे हैं। रखरखाव ठीक नहीं होने की वजह से सीढिय़ों में काई लग चुकी है, जिससे फिसलने का डर भी बना रहता है। कुछ समय पहले प्रयागराज से आए एक परिवार का करीब दस वर्ष के बच्चा फिसलकर गिरा था और चोटिल हो गया था। यहां पर लोगों का प्रवेश दुर्घटना को बढ़ावा दे रहा है। इस कारण अब विभाग ने निजी हाथों में रखरखाव की जिम्मेदारी देने की तैयारी की है।




स्थानीय स्तर पर समिति नहीं बनी

दो वर्ष पूर्व शासन की ओर से कहा गया था कि रीवा सहित प्रदेश के दूसरे हिस्सों में जहां भी वन क्षेत्रों के आसपास पर्यटन स्थल हैं, उनका विकास करने के साथ ही रखरखाव के लिए स्थानीय स्तर पर समितियों का गठन किया जाएगा। इसके पीछे वजह बताई गई थी कि स्थानीय लोगों को रोजगार के साथ ही उनकी कला-संस्कृतियों को भी संरक्षण होगा।





बाहर से आने वाले लोग स्थानीय कलाओं और संस्कृति के बारे में जानेंगे। अब कहा जा रहा है कि ओपन बिड में निजी एजेंसियों को आमंत्रित किया जाएगा और जिसमें कोई भी संस्था रखरखाव की जिम्मेदार अपने हिसाब से कर सकेगी और इसके बदले निर्धारित राशि विभाग को देगी।





योगिनी माता मंदिर क्षेत्र के विकास के लिए प्रस्ताव

पुरातत्व विभाग ने सिरमौर क्षेत्र में ही स्थित योगिनी माता मंदिर क्षेत्र के विकास के लिए प्रस्ताव तैयार किया है। इसकी स्वीकृति के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। यह पुरातात्विक धरोहरों में शामिल है। यहां पर शदियों पुराने शैलचित्र हैं, जिनके संरक्षण के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है। कुछ समय पहले ही जबलपुर की टीम ने इसका सर्वे किया था।

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