MP में लगा गधों का मेला, करोड़ों का कारोबार:सलमान की कीमत सबसे ज्यादा; अक्षय, शाहरुख और कटरीना भी आए
मध्यप्रदेश में एक अनोखा बाजार सजा है। इस बाजार में अगर कोई भूला-भटका शख्स पहुंच जाए तो वह कवि ओम प्रकाश ‘आदित्य’ की मशहूर कविता की उन लाइनों से इत्तेफाक जताता हुआ नजर आएगा, जिसमें उन्होंने लिखा है कि ‘इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं, जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं’।
दरअसल, सतना जिले में चित्रकूट के मंदाकिनी तट पर मंगलवार से दो दिवसीय गधा मेला की शुरुआत हुई। इस मेले में पहुंचने वाले गधे और खच्चर भी खास होते हैं। इनके मालिक इन्हें कद काठी, रंग-रूप और व्यवहार के आधार पर इनका नाम रखते हैं। ये नाम भी आम चलन के नहीं होते हैं। इनमें कोई शाहरुख होता है, तो कोई अक्षय।
किसी को सलमान पुकारा जाता है तो कोई कटरीना। इस दौरान खरीदार उनका मुआयना कर रंग-रूप और कद काठी के आधार पर मोल-भाव करते हैं। इस मेले में यूपी और एमपी के पशुपालक अपने-अपने गधे बिक्री के लिए लेकर पहुंचे हैं।
ज्यादा वजन उठाने वाले का नाम रणबीर और ऋतिक
भारत में लगने वाला यह इकलौता ऑफिशियल गधा मेला है। जिसके आयोजन के लिए शासनादेश जारी होता है। यहां लगभग 3 करोड़ रुपए का गधों का कारोबार होता है। मेले में लगभग 5 हजार गधे लाए जाते हैं।
गधों की एंट्री फीस 300 रुपए होती है। जिस गधे का नाम सलमान है, उसकी कीमत 1 लाख 20 हजार रुपए है और जिसका नाम राजकुमार है उसकी कीमत 30 हजार रुपए है। ज्यादा वजन ढोने की क्षमता वाले गधे का नाम रणबीर और ऋतिक रखा गया है।
साल भर मेले का इंतजार करते हैं खरीदार
चित्रकूट में इस मेले के आयोजन की शुरुआत मुगल शासक औरंगजेब ने कराई थी। तभी से चित्रकूट के नयागांव में प्रति वर्ष यह अनोखा मेला सजता आ रहा है। पड़वा से शुरू हुआ मेला भाई दूज तक चलेगा।
सैकड़ों की तादाद में इस वर्ष भी गधे और खच्चर यहां लाए गए हैं। इनका व्यापार करने वाले लोग इस दिन के लिए साल भर तैयारी करते हैं, और अपने गधों का प्रदर्शन इस मेले में करने के लिहाज से उनका पालन-पोषण करते हैं। इनके नाम भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं।
पूरे एमपी और यूपी से गधे बेचने के लिए चित्रकूट में लाए जाते हैं। यहां गधों का मेला दो दिन तक लगता है। इस साल भी सैकड़ों की तादाद में गधे और खच्चर यहां लाए गए हैं।
पहले की तुलना में कम हुई गधों की बिक्री
गधों की बिक्री में पूर्व के वर्षों की अपेक्षा बेहद कमी आई है, बावजूद इसके परंपरा का पालन करने कारोबारी चित्रकूट पहुंचते हैं। उनका कहना है कि धंधा भले ही कम होता है लेकिन भगवान कामतानाथ के दर्शन, कामदगिरि की परिक्रमा और मंदाकिनी में दीपदान का अवसर भी मिल जाता है, और पीढ़ियों की परंपरा का निर्वाह भी हो जाता है। इसलिए वे मेले में शामिल होने हर वर्ष आते हैं।
चित्रकूट में लगने वाले मेले में गधों का कारोबार लगभग 3 करोड़ का होता है। यहां गधों की कद-काठी के हिसाब से कीमत होती है। इनके नाम भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं।
मेले के लिए जमीन उपलब्ध कराती है नगर पंचायत
मेले का आयोजन एमपी के सतना जिले के हिस्से में आने वाले चित्रकूट में किया जाता है। नगर पंचायत चित्रकूट इसके लिए स्थान उपलब्ध कराती है। गधे लेकर आने वाले कारोबारियों से टैक्स भी वसूला जाता है।
यहां जिस स्थान पर यह ऐतिहासिक मेला सजता है, वह अतिक्रमण की चपेट में है। नगर पंचायत चित्रकूट टैक्स तो वसूलती है, लेकिन तमाम तैयारियों के बीच इस मेले की व्यवस्थाओं की अनदेखी की जाती है। यहां पीने के पानी और शौचालय तक का प्रबंध नहीं किया जाता है।