मध्यप्रदेश: रीवा के छात्र की आर्मेनिया में हत्या,हत्या के संदेही को आर्मेनिया पुलिस ने किया गिरफ्तार।




आर्मेनिया के येरेवन शहर में एमबीबीएस की पढ़ाई करने गए एक छात्र की 28 अगस्त की रात्रि को हत्या कर दी गई

मृतक छात्र त्योंथर विधानसभा के गढ़ी सोहरवा गांव का रहने वाला है। सोहरवा के सचिव सुनील कुमार मिश्रा ने बताया कि कैलाश नारायण द्विवेदी का पुत्र आशुतोष द्विवेदी (आशु)27 वर्ष , आर्मेनिया पढ़ाई करने गया था। जहां से 29 अगस्त की शाम उसके मौत की खबर परिजनों को मिली है।



घटना का विवरण

आर्मेनिया के फोटो जर्नलिस्ट शमस्यान की रिपोर्ट के मुताबिक 28 अगस्त को येरेवन में एक हत्या हुई थी। लगभग 09:00 बजे के आसपास, येरेवन रेजिमेंट की पहली बटालियन की दूसरी कंपनी की पेट्रोलिंग पार्टी ड्यूटी पर थी , तभी एक नागरिक ने उनसे संपर्क किया और उन्हें सूचित किया कि

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डेविट बेक स्ट्रीट पर एक दुकान है जहां खुले क्षेत्र में एक सोफे पर एक शव मिला है। सूचना के बाद आरए पुलिस की गश्ती सेवा के प्रमुख ‘अर्तुर उमरशटियन’, गश्ती सेवा के येरेवन रेजिमेंट के ‘कमांडर एंड्रानिक इसाखानियन’ और उसी रेजिमेंट की पहली बटालियन के ‘कमांडर अराम ददोयान’ घटनास्थल पर पहुंचे। जहां मौके पर पुलिस और जांचकर्ताओं को सोफे पर एक युवा लड़के का शव मिला, जिसके सिर और चेहरे पर गहरे घाव थे । सोफे के नीचे और सोफे पर खून लगा हुआ था साथ ही घटनास्थल पर लोहे की रॉड थी, जिस पर भी खून के निशान थे। इसी रॉड से हत्यारे ने आशू की हत्या की थी ।

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आशू की हत्या के संदेह में बलविंदर सिंह नाम के 45 वर्षीय व्यक्ति को एरेबुनी पुलिस स्टेशन लाया गया। जहां पूछताछ में उसने व्यक्तिगत मामलों पर टिप्पणी का विवाद होना बताया और बहस के बाद उसकी हत्या करना कुबूल किया । जिसके बाद एरेबुनी और नुबारशेन प्रशासनिक जांच विभाग के जांचकर्ता के आदेश पर हत्यारे बलविंदर सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया ।




गरीबी से जूझ रहे परिवार ने पार्थिव शरीर भारत लाने सरकार से लगाई गुहार

मृतक के परिजनों ने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है। हम अपने दम पर लाश भारत नहीं ला सकते है। ऐसे में राज्य सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान से मदद की गुहार लगाई है।




आर्मेनिया कानून के सम्बंध में सूचना : कथित अपराध के संदिग्ध या आरोपी व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उसका अपराध आर्मेनिया गणराज्य की आपराधिक प्रक्रिया संहिता द्वारा अदालत के कानूनी रूप से बाध्यकारी निर्णय द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार साबित नहीं हो जाता है।

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