तस्वीरों को शब्दों की जररूत नही,….

अब सब जल बुझ गया
कोई घर का मुखिया था,
किसी पर परिवार की नींव टिकी थी,
कोई घर का मंझला था, कोई छोटका, तो कोई बड़का, बुढ़वा, जेठउता, देबर, ससुर, सुहाग, मनसेरु कोई न कोई रहा
अब सब रिश्ते जलबुझ गए ।

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राजनीति की आंच में आज ढ़ेरों जंदगियां भुन गई
राजनीति के जनजाति के मेले का सफर खत्म हुआ,
और खत्म हुआ तो 14 लोगो का भरा पूरा परिवार ।




हादसे की सूचना रात को ही घर मे पंहुच गई, पूरे गांव में कोहराम मच गया, मां-पत्नी-पिता-परिजन दहाड़ मारकर रोने लगे, ये देख उपस्थित लोगों की भी आंखें भी नम हो गईं। शव आने की सूचना पर गांव के लोग रातभर जगे थे।
सब की नींद उड़ी हुई थी, किसी के घर में खाना नहीं बना था।

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जब ढ़ेरों शवो को एकसाथ गांव में लाया गया तो महिला-बच्चे-बूढ़े-जवान सभी फूट फूट कर रोने लगे, पूरे गांव में बिलखती आवाज का मातम सा छा गया
कोशो दूर से आवज सुन लोगो की भी आंखें झर झर बहने लगीं
किसी के वृद्ध मां-बाप रो रहे थे, तो कहीं पिता के शव को देख पुत्र लिपट रहा था। पत्नी के आंसू रो-रोकर सूख चुके थे। भाई, अपने भाई की इस राजनीति हत्या पर खामोश था लेकिन आंसू न चाहते हुए भी आ ही जाते रहे,
जिस गांव में कभी इनका बचपन बीता, वहीं आज चादर में लिपटा शव देखकर चाचा-काका उनके बचपन याद कर रहे थे।
गांववालों-परिजनों में अपनों को खोने का गम है, पर राजनीतिक हादसे से सब चुप थे किससे लड़ें, किससे कहें ?




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पिता, बेटे, भाई सबके अपने-अपने रिश्तों ने मुखाग्नि दी
रोते हुए कहा– बचपन में कितनी बार इसी कंधे पर पुत्र को उठाया था, लेकिन अब नहीं उठा पाऊंगा। यह बोझा नहीं उठता
भगवान ऐसी स्थिति किसी बाप की न करे !




7 साल का बेटा अग्नि देते पूंछ रहा था- पापा कब उठिहैं,….?
ये मासूम सवाल सुन सब खामोश थे
भाव-शून्य चेहरे के साथ 7 वर्षीय बेटा अपने पिता को अग्नि दे कर शांत बैठा है, विधाता का ये अन्याय भी बड़ा दुःखद रहा– जो पीतल के लोटे को पकड़े रहने की रश्म भी इस 7 वर्षीय बालक को निभानी पड़ रही है




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जो सैकड़ो किलोमीटर दूर का सफर करने पर मजबूर हुए,…

लेखक :अज्ञात

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