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जमींदार पं रणजीत रॉय दीक्षित ने ब्रिटिश हुकूमत को याद दिला दिया था छठी का दूध.. ===================================

देश के साथ ही रीवा में सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला जल रही थी, क्रांतिकारी ब्रिटिश हुकूमत को करारा जवाब दे रहे थे. इस क्रांति को कुचलने ब्रिटिश हुकूमत क्रांतिकारियों को फांसी दे रही थी या फिर जेल में डाल देती थी. इस युद्ध में महान विभूतियों ने अपने प्राण न्योछावर किये थे उनमें से डभौरा के जमींदार पं. रणजीत राय दीक्षित प्रमुख थे। 1857 के क्रांति मे जमींदार पं रणजीत रॉय दीक्षित ने ब्रिटिश हुकूमत को छठी का दूध याद दिला दिया था.

रीवा जिले के डभौरा जमींदार पं. रणजीत राय दीक्षित ने हनुमान प्रसाद भुइंहार ग्राम करौना जिला सरयू और मत्तगज्जन सिंह चौधरी ग्राम सिरौटा जिला इलाहाबाद को उनके 500 साथियों समेत अपने यहां टिका लिया था. जिस समय ब्रिटिश सेना ने डभौरा पर चढ़ाई की थी.

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ब्रिटिश हुकूमत के कहने पर महाराज रघुराज सिंह ने 100 सवार 800 पैदल 35 गोलंदाज और 2 तोपे भेजी थी. आरा के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी कुमर सिंह रीवा होकर झांसी की रानी महारानी की सहायता को जाना चाहते थे. ब्रिटिश हुकूमत के कहने पर महाराज रघुराज सिंह ने सेना के साथ अपने दीवान दीनबंधु को उनको रोकने के लिए भेजा था. प्रयाग के निकट कुमार सिंह का रास्ता रोक दिया गया और वह आगे नहीं बढ़ सके.

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प्रयाग से बांदा को जोड़ने वाली सड़क ग्राम डभौरा के पास से गुजरती है. यह सड़क अंग्रेजों के लिए प्राण नली के समान थी. किसी प्रकार इस को नष्ट करना स्वतंत्रता सेनानियों के लिए अनिवार्य था यह कार्य पं.रणजीत राय दीक्षित जी को सौंपा गया था।

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सन 1857 में स्वतंत्रता युद्ध के आरंभ होते ही रणजीत राय दीक्षित जी ने युद्ध की घोषणा कर दी और उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के सेनानियों को अपने यहां बुलाया इनके बुलाए जाने पर उत्तर प्रदेश से ठाकुर मतंगजन सिंह, छोटे हनुमान सिंह, बढ़े हनुमान सिंह मध्यप्रदेश रामगढ़वा से ठाकुर संग्राम सिंह, ठाकुर रणमत सिंह अपने दलबल के साथ आ गए। इसके बाद इन स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा डभौरा में रहकर एक नीति बनाई उसमे इलाहाबाद– बांदा सड़क जो डभौरा से होकर गुजरती थी वह रोड अंग्रेजों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थी ऐसे में इन्होंने अंग्रेजों को इस रोड पर अंग्रेजों पर कई दफा घात लगाकर हमला किया।

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डभौरा के समीप मुड़कटा के मैदान में अंग्रेजों और कुंवर सिंह के मध्य युद्ध हुआ. ऐसे में रणजीत राय दीक्षित भी अपनी फौज लेकर कुंवर सिंह की सहायता के लिए युद्ध भूमि पहुंच गए. कहा जाता है कि फौज में सबसे आगे घोड़े पर सवार पं. रणजीत राय दीक्षित अपनी दोनों तलवारों से कई अँग्रेजों के सिरों को धड़ से अलग कर दिए थे. देखते ही देखते दर्जनों सिर काट दिए, इसलिये उस स्थान का नाम मुड़कटा पड़ा. 1857 की इस क्रांति में जमींदार पं रणजीत रॉय दीक्षित कई साथी भी इस स्थान पर वीरगति को प्राप्त हुए थे. इसमें एक मथानी लोहार भी थे. जिनकी वीरता के किस्से आज भी कहे जाते है.

ऐसे मैं अंग्रेज बेरिंग ने पं. रणजीत राय दीक्षित को हावी होते देख अंग्रेजी सैनिकों को एक साथ पं. रणजीत राय दीक्षित पर हमला करने को कहा. ऐसे में युद्ध लड़ते-लड़ते बेरिंग ने एक-एक करके पं. रणजीत राय दीक्षित के दोनो हाथोँ पर तलवार से कई वार किये, उन्हें फिर कैद करके बंगाल ले जाया गया. जहां पर उन्हें फांसी दी गई और वह वीरगति को प्राप्त होकर अमर हो गए।

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