MBA चायवाला के बाद इंदौर में PSC समोसेवाला

डिप्टी कलेक्टर बनने के लिए 6 साल पहले इंदौर आया, जानिए अब क्यों बेचना पड़ रहे समोसे..




इंदौर से करीब 900 km दूर है रीवा। यहां के ग्राम चौखड़ा में 24 दिसंबर 1997 को अजीत सिंह का जन्म हुआ। अजीत के परिवार में पिता सुभाष सिंह मां सरोज सिंह, छोटा भाई आशीष सिंह व दादा रोहिणी प्रसाद सिंह है। पिता किसान है, अजीत ने 2017 में डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना देखा और इस सपने को पूरा करने के लिए वह इंदौर आए, जबकि पिता चाहते थे कि बेटा इंजीनियर बने।




चलिए आपको बताते है अजीत के सपने से लेकर उसके संघर्ष की कहानी…

मार्च 2017 का वक्त, 19 साल की उम्र में अजीत सिंह डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना लिए अपने परिवार और गांव को छोड़ अजीत इंदौर जैसे शहर में आए। रुम की तलाश और डिप्टी कलेक्टर बनने के लिए पीएससी की तैयारी में कोचिंग ज्वाइन की। इंदौर में रहकर डिप्टी कलेक्टर बनने की तैयारी यह उनके लिए आसान न था। पिता 5 हजार रुपए महीने देते थे। एक दोस्त के साथ रुम शेयर करके रहते और खाना भी खुद बनाते। पढ़ाई का खर्च भी पिता के पैसों से ही चल रहा था।




2018 में पात्र न होते हुए भी कोचिंग में पीएससी की तैयारी की। अजीत ने डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना और कुछ कर दिखाने के जस्बे के साथ अजीत ने 2019 में एग्जाम दी, लेकिन मामला कोर्ट में जाने से रिजल्ट नहीं आया। फिर 2020 में एग्जाम दी जिसमें वे प्री क्लियर नहीं कर पाए और 2021 में एग्जाम दी, लेकिन रिजल्ट नहीं आया। अजीत का कहना है कि न तो एमपीपीएससी की भर्ती प्रक्रिया निरंतर हो रही है न ही एमपीएसआई, पटवारी और व्यापम की अन्य परीक्षाएं आयोजित हो रही है।





बेटे को सरकारी नौकरी लगने की आस में पिता लगातार मेहनत कर उन्हें पैसे भिजवाते रहे। उनके कंधों का भी अब बोझ बढ़ने लगा। परिवार के लोग भी बार-बार पूछते, बेटा रिजल्ट कब आएगा। मगर अजीत के पास इस बात का कोई जवाब नहीं होता। इस बार आर्थिक समस्या बढ़ गई। उनके गांव में बारिश की कमी के चलते 20 बीघा खेत में फसल ही नहीं लग पाई और नुकसान अलग हो गया।






आर्थिक संकट से जूझते अजीत ने इंदौर में रहकर तैयारी करने और अपना खर्च उठाने का फैसला लिया। कुछ दोस्तों की मदद से 10 हजार रुपए महीने की दुकान किराए पर ली। इसमें उन्होंने PSC समोसा वाला नाम से दुकान खोली। ये दुकान खोलने का विचार भी अजीत के मन में इसलिए आया क्योंकि 2015 में उनके पिता ने 4 से 6 महीने के लिए होटल खोला था, मगर नुकसान के चलते उसे बंद करना पड़ा था। इस दौरान अजीत ने होटल चलाने और समोसा बनाने सीखा।



दुकान खोलने के बाद भी नहीं छोड़ी तैयारी

अजीत का कहना है कि उन्होंने दुकान डालने के बाद भी अपनी तैयारी करना नहीं छोड़ा है। वे सुबह 4 बजे उठते है और 7 से 8 बजे तक अपनी पढ़ाई करते है। इसके बाद वे अपने घर के काम कर दुकान पर आ जाते है। यहां वे समोसे बनाने का काम करते है। इसमें समोसे का मसाला, चटनी तैयार करना इसके अलावा समोसा को बनाकर उन्हें तलने का भी वो खुद ही करते है। दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक वे दुकान पर ग्राहकों को समोसे खिलाते है। फिर दुकान बंद कर रुम पर जाते और वहां खाना खाकर 10 से 10.30 बजे तक सो जाते है। हालांकि वे अभी पढ़ाई के लिए 4 से 5 घंटे ही निकाल पा रहे है।




अपने से दूर नहीं करना चाहते PSC को इसलिए रखा नाम

अजीत बताते है कि वे पिछले कई सालों से पीएससी की तैयारी कर रहे है और वर्तमान भी उनकी तैयारी जारी है। वे अपने आप को पीएससी से अलग नहीं करना चाहते इसलिए उन्होंने अपनी दुकान का नाम भी PSC समोसा वाला रखा है। 1 सितंबर को ही उन्होंने खंडवा रोड स्थित गणेश नगर में ये दुकान खोली है। जहां अब लोगों की भीड़ भी समोसे के लिए लगने लगी है।




दुकान पर अखबार की जगह रखी किताबें

उन्होंने अपनी दुकान पर अखबार रखने के बजाए पीएससी एग्जाम में काम आने वाली प्रतियोगी, करंट अफेयर की किताबें रखी। जब उनकी दुकान पर ग्राहकी नहीं रहती है तो वे उस खाली वक्त में उन किताबों से पढ़ाई करते है और यहां आने वाले स्टूडेंट भी इन किताबों को पढ़ते है।





6 घंटे खोलते है दुकान

अजीत ने 1 सितंबर से ही दुकान शुरु की। बावजूद इसके उन्होंने अपना खर्च निकालने के लिए वे सिर्फ 6 घंटे यानी दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक ही दुकान खोलते है। इस दौरान ही वे समोसे बेचते है। उनका कहना है कि वे रीवा के स्पेशल समोसे बनाते है। साथ ही उनके यहां स्पेशल चटनी भी है। यहां एक समोसा 8 रुपए में चटनी के साथ और दो समोसे 15 रुपए में चटनी के साथ, जबकि एक समोसा मटर के साथ 15 रुपए में और 2 समोसे मटर के साथ 25 रुपए में है

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