FB_IMG_1659198688594

महाराज मार्तण्ड सिंह ने कराई थी सफ़ेद बाघ की पहचान, दुनियाभर में है मोहन के वंशज..

===================================

 

आज इंटरनेशनल टाइगर-डे है.. पूरी दुनियाभर के वन्य प्रेमी इसे अपने-अपने तरीके से मानते है. लेकिन अगर बात मोहन की ना हो तो यह डे अधूरा सा लगता है. रीवा के लिए यह और भी ख़ास हो जाता है. दुनिया को व्हाइट टाइगर का उपहार विंध्य की भूमि ने ही दिया था. आप को जानकर हैरानी होगी दुनिया में जहां भी व्हाइट टाइगर है सभी मोहन की संताने है.

 

दुनिया मे पाये जाने वाले बाघ से अलग.. सफेद बाघ 9 फीट लंबा, सफेद रंग, गुलाबी नाक, लम्बा जबडा, नुकीले दॉत। जी हॉ यही है सफेद बाघो का जनक मोहन… मोहन की कहानी रीवा से शुरु होती है जो पूरी दुनिया में मशहूर है। 1951 में सीधी के बगरी जंगल से महाराजा मार्तण्ड सिंह ने शिकार के दौरान 6 माह के शावक को पकडा और इसका नाम रखा मोहन। इस बाघ को पकड़कर गोविंदगढ़ किला लाया गया और इसे यहॉ रखने के लिये बॉघ महल बनाया गया। नन्हे मोहन को महल मे रखने के पुख्ता इंतजाम थे।

गोविंदगढ़ बॉघ महल मे नन्हा मोहन अकेलापन होने के चलते उदास रहता था, कभी सोच विचार के बाद महाराज ने बाघिन भी महल मे रखने का निर्णय लिया। मोहन और बेगम को महल मे छोड दिया गया इसके बाद मोहन ने जंगल की तरफ मोड कर नहीं देखा। मोहन की चर्चा देश-विदेश में फैल गयी और एक-एक करके सफेद बाघ पूरी दुनिया में पहुंच गये।

 

प्रतिदिन 10 किलो बकरे का गोश्त, दूध, अंडे मोहन का प्रिय आहार था। लेकिन आश्चर्य यह था कि मोहन रविवार के दिन व्रत रखता था और फुटबॉल उसका पसंदीदा खेल था। मोहन की अठखेलियां देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते थे और बाघ महल की बाघ के देखने के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये थे।

Rewa History : जिले के डभौरा जमींदार पं रणजीत रॉय दीक्षित ने ब्रिटिश हुकूमत को याद दिला दिया था छठी का दूध.. पढ़िए पूरी कहानी

तीन रानियां चौतीस संतानें.. जी हॉ रीवा की जमीन पर मोहन की तीन रानियां बॉघ महल गोविन्दगढ़ मे थी और इनसे 34 सफेद बाघ जन्में। 16 वर्षीय सफेद बाघ मोहन की राधा, सुकेशी नाम की तीन रानियां थी, बेगम ने 14, राधा 7 और सुकेशी ने 13 सफेद बाघो को जन्मा। 1955 में पहली बार बाघो के बेचने और क्रय करने की घटना हुई। कोलकाता के पी.एम.दास है 2 बाघ और बाघिन को क्रय किया। इसके पूर्व बाघ के चमड़े की बिक्री होती थी यह नई घटना थी इसलिये चर्चा का विषय बन गयी। बॉघ देखने के लिये राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू रीवा आये। उन्हें यहाँ महाराज ने एक-एक बॉघ भेंट किये। इसके बाद देश-विदेश में बॉघ भेजने का दौर शुरु हो गया। गोविंदगढ़ बॉघ महल मे मोहन का वंशज विराट आखिरी बॉघ था। इसकी मौत के बाद महाराज के बॉघ से मोह भंग हो गया, बाघो को यहां से बाहर भेज दिया गया।

 

जीवित बाघों की ताबड़तोड़ खरीदी-बिक्री तो रीवा रियासत में हुई है.. मरने वाले सफेद बाघो को भी लकडी की चौखट में जड़वाकर ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को भेंट किया गया। यह किंग्सटन प्राकृतिक संग्रहालय में सुरक्षित रखा हुआ है। रीवा रियासत ने 613 बाघो का शिकार किया था। इस क्षेत्र में कई शिकारगाह थे।

 

क वक्त ऐसा था जब यहाँ एक भी व्हाइट टाइगर नहीं बचे थे, पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के अथक प्रयासों से लम्बे अरसे बाद यहाँ टाइगर की वापसी हुई. मुकुंदपुर में महाराजा मार्तण्ड सिंह के नाम पर व्हाइट टाइगर सफारी बनाया गया है. यह 100 हेक्टेयर में फैला हुआ है. सफारी में 30 बाड़े बन कर तैयार हो चुके है. चार बाड़ों का काम चल रहा है. 40 बाड़ो का निर्माण प्रस्तावित है. जहा व्हाइट टाइगर के साथ अन्य जीव विचरण करते है. सफारी में पिछले 4 साल के अंदर 16 लाख 70 हजार 561 देश और 155 विदेशी पर्यटक मोहन के वंशजों को देखने आ चुके है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *