सीनियर IAS अफसर को याद दिलाई संस्कृति बोले- विदेश से तो नहीं आए हो, देखें वीडियो

भोपाल. मध्यप्रदेश में सीनियर IAS अधिकारी के बयान को लेकर मचा बवाल थमता नजर नहीं आ रहा है । अब मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम ने इसे लेकर आईएएस अधिकारी को भारत की संस्कृति की याद दिलाई है और साथ ही ये भी कहा है कि कहीं अधिकारी विदेश से नहीं आए हैं।




बता दें कि सीनियर IAS अधिकारी अशोक शाह जो कि वर्तमान में एसीएस (ACS) है महिला बाल विकास विभाग के लाडली लक्ष्मी योजना 2.0 कार्यक्रम के दौरान मंच से कहा था कि मध्यप्रदेश में साल 2005 में सिर्फ 15 प्रतिशत माताएं ही अपनी बेटियों को दूध पिला पाती थीं। योजना के बाद यह आंकड़ा 42 प्रतिशत हो गया है। जिसे लेकर बवाल मचा हुआ है। एक तरफ कांग्रेस सरकार पर हमला कर रही है तो वहीं बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भारती सहित अन्य नेता भी इसे लेकर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं।




विधानसभा अध्यक्ष ने याद दिलाई संस्कृति मध्यप्रदेश विधानसभा में शनिवार को ट्रेनी IAS अधिकारियों से मुलाकात के दौरान मीडिया के द्वारा जब विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम से बीते दिनों एसीएस अशोक शाह के बयान को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने एसीएस अशोक शाह को उनकी संस्कृति याद रखने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि हम पश्चिमी देशों से तो वापस नहीं आए हैं,




भारत की संस्कृति को समझना पड़ेगा। हमेशा याद रखना संस्कृति बनती है परंपराओं और संस्कारों के मेल से और भारतीय दर्शन में तीन चीजें हैं प्रकृति, विकृति और संस्कृति। प्रकृति क्या है प्रकृति का नियम ये है कि जो आपके पास है वो आप रखो और जो हमारे पास है वो हम रखें, आप मत लो।





हमको शोषण नहीं करना है हमको दोहन करना है, जिस तरह से गाय दूध देती है तो उसको निचोड़ना नहीं है, जितना दूध देती है दोह लो और छोड़ दो वो 6 घंटे बाद फिर दूध देगी। तो हमको दोहन करना है ये है प्रकृति और विकृति क्या है हम प्रयास करते हैं आपको कुछ न मिले भले हमें मिले या न मिले ये विकृति है। और संस्कृति ये है कि पहले आप प्राप्त कर लो जो बचा कुछा होगा तो हम प्राप्त कर लेंगे क्योंकि हम वसुधैव कुटुंबकम वाले हैं अतिथि देवो भव वाले हैं..




ये भारतीय संस्कृति है। हमें इसका ख्याल रखना चाहिए और इसलिए मैंने कहा कि जाओ जरा पूछो कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वो पश्चिमी देशों से लौटे हों और कहा हो कि हमारी माताएं बच्चों को दूध नहीं पिलाती शायद वहां से लौटे हों वहां नहीं पिलाते..वहां की संस्कृति अलग है हमारी संस्कृति अलग है।





उमा भारती ने सीएम से की थी शिकायत बता दें कि एसीएस अशोक शाह के बयान के बाद उमा भारती भड़क गई थीं और मुख्यमंत्री से फोन पर बात कर इस बयान पर विरोध दर्ज कराया था। उमा भारती ने इस बारे में ट्वीट कर भी सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जताई थी।




उमा ने ट्वीट में लिखा था कि मध्यप्रदेश में लाडली लक्ष्मी योजना 2.0 के क्रियान्वयन शुरू होने का स्वागत। मध्य प्रदेश सरकार के इस कार्यक्रम में भाषण देते हुए प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी का बेहद असंगत एवं हास्यास्पद कथन देखा। हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री जी महिलाओं के सम्मान के लिए बहुत सजग एवं संवेदनशील हैं, जब मैंने फोन पर बात करके उनको यह बात बताई तो वह इस कथन से असहमत और आश्चर्यचकित थे।




मुख्यमंत्रीजी की बात से लगा कि समारोह में बहुत शोर के कारण वह इस बात को सुन नहीं पाए। मुझे लगता है कि वह इस कथन को ठीक करने का रास्ता स्वयं निकाल लेंगे। सीनियर आफिसर ने कहा था कि हमारी योजना के कारण अब 42% महिलाएं अपनी बेटियों को दूध पिलाती हैं, जबकि 2005 से पहले वह 15% था।





यदि यह कथन सही छपा है तो यह बेटी विरोधी, माता विरोधी एवं मध्यप्रदेश की मातृशक्ति की छवि खराब करने वाला है, अधिकारियों को अपने बयान के प्रति सचेत एवं जिम्मेवार रहना चाहिए। अमीर हो या गरीब, बेटा हो या बेटी, बच्चे के जन्मते ही हर मां अपने बच्चे को दूध पिलाती ही है, लाखों में एक केस में कई कारणों से ऐसा नहीं होता होगा। आखिर सारी महिलाएं बेटियां ही हैं वो जिंदा कैसे रह गईं।



सीएम के सामने दिया था ऐसा बयान बता दें कि एसीएस अशोक शाह (ACS) ने यह बयान बुधवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में महिला बाल विकास विभाग की लाड़ली लक्ष्मी योजना 2.0 कार्यक्रम में दिया था। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री मुख्य अतिथि थे। तभी महिला बाल विकास विभाग (women and child development department) के अतिरिक्त मुख्य सचिव अशोक शाह ने कुछ ऐसा कह दिया जिसे सुनकर सब चौंक गए थे।




शाह ने स्तनपान की बढ़ोत्तरी के पीछे सरकार की एक योजना का हवाला दिया था। शाह ने कहा था कि मध्यप्रदेश में अपने बच्चों को (आशय बेटियों से) दूध पिलाने वाली मांओं की संख्या काफी कम थीं, जो अब योजना प्रारंभ होने के बाद बढ़ गई है। अशोक शाह ने कहा कि साल 2005 में सिर्फ 15 प्रतिशत माताएं अपनी बेटियों को दूध पिला पाती थीं। योजना के बाद यह आंकड़ा 42 प्रतिशत हो गया है।

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