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स्थानीय और बाहरी ब्राह्मणों की लड़ाई:राजस्थानी पण्डित होने के चलते हारे भाजपा महापौर प्रत्याशी, रीवा के ब्राह्मणों ने नहीं माना अपना

 

रीवा महापौर चुनाव में स्थानीय और बाहरी ब्राह्मणों की खूब हवा चली। दावा है भाजपा महापौर प्रत्याशी के राजस्थानी पंडित होने के कारण 24 साल बाद भाजपा की मेयर कुर्सी खिसक कर कांग्रेस के पास चली गई है। नाम न बताने की शर्त पर एक शासकीय सेवक ने बताया कि रीवा के महाराजा की शादी राजस्थान में हुई थी। तभी महारानी के साथ भाजपा प्रत्याशी प्रबोध व्यास के वंशज रीवा आ गए थे। हालांकि बाद में प्रबोध व्यास के परिजन विंध्य के ब्राह्मणों के साथ घुल मिल गए। यहां तक की शादियां भी बघेलखंड में होने लगीं। फिर भी सरयू पारी ब्राह्मणों ने तीन और 13 के चक्कर में हरा दिया।

 

कौन होते है तीन और 13 ब्राह्मण

बुर्जुगों ने बताया कि बघेलखंड में तीन के ब्राह्मण पडरहा, परौहा और तिवारी होते है। इसी तरह गर्ग, गौतम और शांडिल्य भी तीन वाले ब्राह्मण है। वहीं पाण्डेय, पाठक, धतुरहा, पयासी, शुक्ला, धरमपुरहा, दुबे, उरमिलया, आदि 13 प्रकार के ब्राह्मण यानि अच्छे पंडितों की श्रेणी में आते है। जिनको सरयू पारी ब्राह्मण बोला जाता है। विंध्य क्षेत्र में सनाढ्य और कानकुब्ज्य ब्राह्मण गिने चुने ही पाए जाते है।

 

चली थी लोकल और बाहरी की हवा

प्रचार के दौरान ही कांग्रेस के कार्यकर्ता लोकल और बाहरी ब्राह्मण की हवा चला रहे थे। दावा था कि प्रबोध व्यास तो बाहरी पंडित है। जीतने के बाद शुक्ला जी के गोद में बैठ जाएंगे। ऐसे में लोकल ब्राह्मण कांग्रेस प्रत्याशी अजय मिश्रा बाबा को जिताना चाहिए। बाबा जिला प्रशासन से लेकर सत्ता पक्ष के सामने भी लड़ सकते हैं।

 

निष्पक्ष नेता की छवि ने अजय मिश्रा को दिलाई जीत

15 वर्ष तक पार्षद होने के कारण अजय मिश्रा बाबा की जनता के बीच दबंग है। निष्पक्ष नेता की छवि थी। वे अपनी बात मानवाने के लिए किसी से भी सामना कर सकते है। साथ ही आम जनता के लिए हर पल मदद के लिए तैयार रहते थे। 18 वर्ष से प्रदेश में भाजपा की सत्ता होने के बाद भी बाबा के किसी भी प्रकार के कार्य नहीं रुके। जिस कार्य में बाबा का नाम आता था, शुक्ला जी भी हाथ खींच लेते थे।

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