भारत जोड़ो यात्रा पर निकले कांग्रेसी नेता राहुल गांधी ने सावरकर की भूमि महाराष्ट्र में उनके ही माफीनामे को दिखाकर एक नये समीकरण को साधने का प्रयास किया है वही दूसरी ओर वीर सावरकर के लिए भारत रत्न की मांग करने वाली उनके ही सहयोगी दल उद्धव ठाकरे की शिवसेना के लिए एक नई चुनौती खडी कर दी हैं।
कौन हैं वीर सावरकर
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को दामोदर और राधाबाई सावरकर के मराठी चितपावन ब्राह्मण हिंदू परिवार में महाराष्ट्र के नासिक शहर के पास भागुर गाँव में हुआ था।सावरकर ने 1922 में रत्नागिरी में कैद के दौरान हिंदुत्व की हिंदू राष्ट्रवादी राजनीतिक विचारधारा विकसित की।वह हिंदू महासभा में एक प्रमुख व्यक्ति थे। 1857 के भारतीय विद्रोह के बारे में द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस नामक उनकी प्रकाशित पुस्तकों में से एक को ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था।सावरकर ने 1939 में मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन किया,उन्होंने द्विराष्ट्र सिद्धांत का भी समर्थन किया।50 साल के कारावास की सजा सुनाई गई और 4 जुलाई 1911 को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में कुख्यात सेलुलर जेल में ले जाया गया । उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा एक राजनीतिक कैदी के रूप में माना जाता था।दयानंद सरस्वती , स्वामी विवेकानंद और श्री अरबिंदो के विपरीत , जो “धर्म के पुरुष” थे, जिन्होंने समाज में सुधारों की शुरुआत की और हिंदू धर्म को दुनिया के सामने रखा, सावरकर ने राजनीति और धर्म को मिलाया और हिंदू राष्ट्रवाद का एक चरम रूप शुरू किया।
राहुल के निशाने पर क्यों हैं सावरकर
वीर सावरकर प्रखर राष्ट्रवादी थें उन्होंने कहा था कि ” भारत एक हिंदु राष्ट्र हैं,हिंदुओं की पितृभूमि हैं पुण्यभूमि हैं” ।सावरकर ने हिंदुत्व को व्याख्यायित किया,आज मोदी राज में हिंदुत्व सरकार के नीति का हिस्सा हैं और सीएए उसी का परिणाम हैं। हिंदू को हिंदू के नाते राजनीति में खड़े होना चाहिए यह उनकी अवधारणा थीं। सावरकर द्वारा बताए गया ” राजनीति के हिंदूकरण” का व्यवहारिक मार्ग पहले महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे ने और फिर देश में मोदी ने अपनाया। जातिभेद भुलाकर हिंदुओं को राजनीतिक ताकत बनने का मंत्र सावरकर ने दिया था,मोदी – शाह ने उसके आधार पर देश की राजनीति पलट दी।भारत की विदेश नीति कैसी हो इसपर सावरकर ने कहा था कि “निर्बलों की तटस्थता निरर्थक” होती हैं। मोदी सरकार में कडाई से इस पर अमल होते दिख रहा हैं और परिणाम भी दृष्टिगोचर हो रहें हैं। वर्ष 1964 के “साहित्यलक्ष्मी” दिवाली संस्करण के आलेख में सावरकर ने गुट निरपेक्ष विदेश नीति की धज्जियाँ उडाते हुए लिखा था कि सामरिक यंत्र- तंत्र और शस्त्रास्त्र निर्मिति में आत्मनिर्भरता हासिल किए बिना गुटनिरपेक्षता की नीति असरदार नही हो सकती। आज मेक इंडिया के तहत रक्षा सामग्री उत्पाद के पिछले आठ वर्ष में हुई प्रगति का अनुभव सभी ने किया हैं। सावरकर का एक ओर सूत्रवाक्य था “गैर हिंदुओं का राष्ट्रीयकरण” करना। गैर हिंदु अपनी भारतीय पहचान नकारें नहीं, उसे स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय भूमिका अपनाएं। मोदी सरकार के सबका साथ सबका विकास में यही भाव निहित हैं।इन सभी जटिलता के आगे दादी इंदिरा गांधी जी द्वारा सराहें गये सावरकर के प्रयासों पर बेबस राहुल माफीनामे पर बखेड़ा करके सुर्खियों को बटोरना चाहते हैं।