शहडोल व सीधी जिले से रीवा आती है रेता, घर बनवाना हुआ कठिन
रीवा। अपने सपनों का आशियाना बनाने वाले लोगों को इस समय रेता की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। खदानों की नीलामी नहीं हुई और न ही पोर्टल शुरू हुआ है। ऐसे में वाहन मालिकों के सामने भी भूखों मरने का संकट खड़ा हो गया है। वहीं चोरीछिपे आने वाली रेता मुंह मांगे दामों में बिक रही है।
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शहडोल व सीधी जिले से आती है रेता
शहडोल के पोड़ी व चरकबाह, सीधी जिले के बहरी, कोटा डोल व निगरी निवास में रेता की खदाने है जहां से रीवा में प्रतिदिन रेता आती है। जुलाई, अगस्त व सितंबर महीने में रेता का उत्खनन बंद कर दिया जाता है और पोर्टल भी क्लोज कर दिया जाता है जिससे रेता का परिवहन पूरी तरह से बंद हो जाता है। नया पोर्टल 1 अक्टूबर से हर साल शुरू हो जाता था जिसके बाद से रेता का परिहवन भी होने लगता था लेकिन इस बार अक्टूबर महीने के 25 दिन गुजर गए है और पोर्टल चालू नहीं हुआ है जिसकी वजह से जिले में रेता की भारी किल्लत मची हुई है। बरसात के लिए काफी संख्या में लोगों ने रेता का स्टाक कर लिया था जिससे अभी तक तो काम चला लेकिन लोगों के पास स्टाक पूरी तरह से खत्म हो गया है और जिले में रेता की भारी किल्लत मची हुई है।
शहडोल के पोड़ी व चरकबाह, सीधी जिले के बहरी, कोटा डोल व निगरी निवास में रेता की खदाने है जहां से रीवा में प्रतिदिन रेता आती है। जुलाई, अगस्त व सितंबर महीने में रेता का उत्खनन बंद कर दिया जाता है और पोर्टल भी क्लोज कर दिया जाता है जिससे रेता का परिवहन पूरी तरह से बंद हो जाता है। नया पोर्टल 1 अक्टूबर से हर साल शुरू हो जाता था जिसके बाद से रेता का परिहवन भी होने लगता था लेकिन इस बार अक्टूबर महीने के 25 दिन गुजर गए है और पोर्टल चालू नहीं हुआ है जिसकी वजह से जिले में रेता की भारी किल्लत मची हुई है। बरसात के लिए काफी संख्या में लोगों ने रेता का स्टाक कर लिया था जिससे अभी तक तो काम चला लेकिन लोगों के पास स्टाक पूरी तरह से खत्म हो गया है और जिले में रेता की भारी किल्लत मची हुई है।
चोरीछिपे लाई जा रही रेता
बड़ी संख्या में लोग चोरीछिपे रेता उत्खनन करवाकर ला रहे है जिसकी कीमत 65 हजार रुपए पार कर गई है। सामान्य दिनों में शहर के भीतर रेता 20 से 25 हजार मेंं गिरती थी लेकिन अब 65 हजार रुपए देने पर भी रेता बड़ी मुकिश्कल से मिल रही है। एक तरफ जहां लोगों की जेब कट रही है तो दूसरी ओर शासन को भी राजस्व की क्षति हो रही है। हैरानी की बात तो यह है कि पोर्टल कब तक में चालू होगा इसकी जानकारी तक वाहन मालिकों को नहीं मिल रही है।
बड़ी संख्या में लोग चोरीछिपे रेता उत्खनन करवाकर ला रहे है जिसकी कीमत 65 हजार रुपए पार कर गई है। सामान्य दिनों में शहर के भीतर रेता 20 से 25 हजार मेंं गिरती थी लेकिन अब 65 हजार रुपए देने पर भी रेता बड़ी मुकिश्कल से मिल रही है। एक तरफ जहां लोगों की जेब कट रही है तो दूसरी ओर शासन को भी राजस्व की क्षति हो रही है। हैरानी की बात तो यह है कि पोर्टल कब तक में चालू होगा इसकी जानकारी तक वाहन मालिकों को नहीं मिल रही है।
आर्थिक संकट से गुजर रहे वाहन मालिक, किश्त भरना मुश्किल
रेता की खदानें चालू न होने से वाहन मालिकों के साथ भूखों मरने का संकट खड़ा हो गया है। किसी तरह तीन माह तक तो उन्होंने मैनेज किया लेकिन चौथे माह खदानें चालू न हेाने से अब उनका काम पूरी तरह से बंद है और वाहनों की किश्त जमा करने के लिए उनको कर्ज लेना पड़ रहा है। चार माह से काम बंद हेाने से वाहन मालिकों के सामने गंभीर संकट खड़ा हो गया है।
शासन को लग रही राजस्व की चपत
रेता उत्खनन शुरू न होने से शासन को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है। प्रतिदिन अकेले रीवा जिले में 200 गाडिय़ां रेता आती है। एक हाइवा में 14 क्यूबिक रेता लोड होती है और उसके एवज में वाहन मालिकों से 220 रुपए प्रति क्यूबिक रुपए जमा करवाए जाते है जो सीधे पोर्टल के माध्यम से शासन के खजाने में जमा होते है। इसके अतिरिक्त सीधी, शहडोल, सतना व यूपी भी काफी संख्या में गाडिय़ां रेता लेकर जाती है। लाखों का हर दिन नुकसान शासन के खजाने को हो रहा है।
रेता उत्खनन शुरू न होने से शासन को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है। प्रतिदिन अकेले रीवा जिले में 200 गाडिय़ां रेता आती है। एक हाइवा में 14 क्यूबिक रेता लोड होती है और उसके एवज में वाहन मालिकों से 220 रुपए प्रति क्यूबिक रुपए जमा करवाए जाते है जो सीधे पोर्टल के माध्यम से शासन के खजाने में जमा होते है। इसके अतिरिक्त सीधी, शहडोल, सतना व यूपी भी काफी संख्या में गाडिय़ां रेता लेकर जाती है। लाखों का हर दिन नुकसान शासन के खजाने को हो रहा है।