सिर्फ चार जाति के लोगों को 44% टिकट, गुजरात मिशन में क्या है बीजेपी का ‘प्लान 4’?

बीजेपी अपने गढ़ गुजरात को बचाने के लिए तमाम तरह की कोशिशें कर रही हैं। इसके तहत कांग्रेस छोड़कर आए लोगों को मैदान में उतारने से लेकर 5 मंत्रियों समेत 38 मौजूदा विधायकों के टिकट भी काटे हैं।

BJP is making all kinds of efforts to save its stronghold Gujarat. Under this, tickets of 38 sitting MLAs including 5 ministers have also been cut from fielding those who left the Congress.




गुजरात विधानसभा की 182 सीटों पर अगले महीने दो चरणों (1 दिसंबर और 5 दिसंबर) में चुनाव होने हैं। बीजेपी करीब ढाई दशक से राज्य की सत्ता पर काबिज है और लगातार छठी बार विधानसभा चुनावों में जीत का परचम लहराने के लिए हर तरह के समीकरण आजमा रही है। अभी तक बीजेपी ने 160 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया है। इन सीटों पर बीजेपी ने पांच मंत्रियों समेत 38 विधायकों का टिकट काट दिया है।





बीजेपी जीत के लिए पुराने सियासी फार्मूले से लेकर नए जातीय समीकरण का सियासी दांव चल रही है। इसी के तहत पार्टी ने पाटीदारों और ओबीसी नेताओं को टिकट बंटवारे में काफी तरजीह दी है। बीजेपी ने अभी तक कुल 160 टिकटों में से 40 पाटीदारों को, 49 ओबीसी को, 24 अनुसूचित जनजाति को, 13 अनुसूचित जाति को, 13 ब्राह्मणों को, 3 जैन समुदाय के लोगों को और 17 टिकट क्षत्रीय समुदाय के लोगों को दिया है।




40 पाटीदार उम्मीदवारों में से 23 टिकट सिर्फ लेउआ जाति के लोगों को और 17 टिकट कदवा पटेल के लोगों को दिए गए हैं। पार्टी ने 49 ओबीसी उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा कोली समाज को 17 और ठाकोर समाज को 14 टिकट दिए हैं। इस तरह इन चार जातियों को कुल 71 यानी 44 फीसदी टिकट दिए गए हैं। बीजेपी मिशन 2022 के तहत इन जातियों पर फोकस कर रही है।




पाटीदारों पर इतना फोकस क्यों?

2015 में शुरू हुए पाटीदार आरक्षण आंदोलन की वजह से 2017 के चुनावों में बीजेपी डबल डिजिट (99) में ही सिमट गई थी। पार्टी को तब 16 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। वहीं कांग्रेस को इसका फायदा हुआ था और 16 सीटें अधिक जीतते हुए उसे कुल 77 सीटें मिली थीं। बाद में पाटीदार आंदोलन के प्रमुख नेता हार्दिक पटेल कांग्रेस में शामिल हो गए थे लेकिन अब उन्होंने पाला बदल लिया है और बीजेपी के उम्मीदवार बन गए हैं।




The BJP was reduced to double digits (99) in the 2017 elections due to the Patidar quota agitation that started in 2015. The party had then suffered a loss of 16 seats. On the other hand, the Congress benefited from this and winning 16 seats more, it got a total of 77 seats. Later, Hardik Patel, a prominent leader of the Patidar movement, had joined the Congress but now he has switched sides and has become a BJP candidate.




1931 की अंतिम जाति जनगणना के मुताबिक राज्य में पाटीदारों की आबादी करीब 11 फीसदी मानी जाती है। माना जाता है कि करीब 40 विधानसभा सीटों पर पाटीदार हार-जीत तय करते हैं। 1980 के दशक तक पाटीदार समाज कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता रहा है लेकिन अब यह कई टुकड़ों में खंडित हो चुका है। सभी राजनीतिक दल पाटीदारों को लुभाने में जुटे हुए हैं।




करीब आधी आबादी ओबीसी:

बीजेपी ने अपने प्लान फोर के तहत पाटीदारों के अलावा ओबीसी मतदाताओं पर भी फोकस किया है। राज्य की कुल आबादी में ओबीसी का हिस्सा करीब 48 फीसदी है। इनमें कोली और ठाकुर आधे के करीब हैं। अगर गुजरात के पूर्वी आदिवासी बेल्ट को छोड़ दें तो पाटीदार पूरे गुजरात में फैले हुए हैं, खासकर उत्तरी गुजरात और सौराष्ट्र क्षेत्र में इनकी आबादी अधिक है।

Apart from Patidars, BJP has also focused on OBC voters under its Plan Four. The share of OBCs in the total population of the state is about 48 percent. Koli and Thakur are close to half of them. Apart from the eastern tribal belt of Gujarat, Patidars are spread all over Gujarat, especially in North Gujarat and Saurashtra region.





उत्तरी गुजरात और सौराष्ट्र का हाल:

लेउवा पटेल की जनसंख्या कदवा पटेल की संख्या से थोड़ी सी अधिक है। लेउवा पटेल का प्रभुत्व सौराष्ट्र और मध्य गुजरात में अधिक है जबकि कदवा पटेल उत्तरी गुजरात में आबादी के लिहाज से मजबूत हैं। सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात में बीजेपी अपेक्षाकृत कम मजबूत है। लिहाजा, इन जातियों के सहारे बीजेपी न केवल चुनावी बैतरणी पार करने की कोशिश में है बल्कि ओबीसी वोट बैंक पर बड़ा प्रभुत्व जमाने की भी कोशिशों में जुटी है




Condition of North Gujarat and Saurashtra:

The population of Leuva Patel is slightly more than that of Kadva Patel. The Leuva Patels are more dominant in Saurashtra and Central Gujarat, while the Kadva Patels are stronger in northern Gujarat in terms of population. The BJP is relatively less strong in Saurashtra and North Gujarat. Therefore, with the help of these castes, BJP is not only trying to cross the electoral battle, but is also trying to establish a big dominance over the OBC vote bank.

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